Friday, March 29, 2024
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रक्षाबंधन का इतिहास, Rakshabandhan ka itihas, रक्षाबंधन 2023,

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रक्षाबंधन का इतिहास, Rakshabandhan ka itihas, बहुत ही पुराना है, वास्तव में यह पर्व कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता है ।
रक्षाबंधन ( Raksha Bandhan ) या राखी हिन्दुओं का एक प्रमुख पर्व है जो आदि काल से ही मनाया जाता है।

हमारे बहुत से धार्मिक ग्रंथो, पुराणों में रक्षाबन्धन का बहुत जगह उल्लेख मिलता है। मनुष्य तो मनुष्य देवता भी इस पर्व को पूरे हर्ष उल्लास के साथ मनाते थे ।
मान्यता है कि इस दिन प्रेम पूर्वक जो भी बहन अपने भाई की कलाई पर राखी / रक्षा सूत्र बांधती है उसके भाई की समस्त अनिष्टों से रक्षा होती है, उसे आरोग्य और दीर्घायु की प्राप्ति होती है ।

रक्षाबंधन का इतिहास, Rakshabandhan ka itihas,

  •  स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नाम की कथा में रक्षाबन्धन ( Rakshabandhan ) का प्रसंग प्राप्त होता है। इसमें लिखी कथा के अनुसार – एक बार दानवेन्द्र , परम वीर राजा बलि ने 100 यज्ञ पूर्ण कर देवताओं से स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद की प्रार्थना की,

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  •  फिर भगवान विष्णु वामन का अवतार लेकर एक ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि के यहाँ पर से भिक्षा माँगने पहुँचे। अपने गुरु के मना करने पर भी बलि ने ब्राह्मण रूपी श्रीहरि को तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान श्री हरी ने अपने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान श्री विष्णु ने राजा बलि के अभिमान को चकनाचूर कर दिया ।
  •  मान्यता है कि जब राजा बलि रसातल में चला गया तब उन्होंने अपने तप अपनी भक्ति के बल से भगवान श्री विष्णु जी को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया।
  • उधर भगवान के घर न लौटने से पूरे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मचने लगा, माता लक्ष्मी भी बहुत परेशान हो गयी तब लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। की आप राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधकर अपना भाई बना लें और उनसे यह वचन ले ले कि आप उपहार में जो भी आप माँगे वह राजा बलि अवश्य ही दे दें।
  • तब माँ लक्ष्मी भेष बदलकर एक सुंदर स्त्री का रूप धारण करके रोते हुए पाताल पहुँची जब बलि ने उनसे रोने का कारण पूछा तो लक्ष्मी जी ने कहा की मैं इसलिए दुखी हूँ कि मेरा कोई भाई नहीं है ।
  • तब बलि ने कहा कि आप मेरी बहन बन जाइये, फिर लक्ष्मी जी ने राजा बलि की दाहिने कलाई पर रक्षासूत्र बांधा और उनसे वचन ले लिया कि वह जो भी माँगे बलि उनको वही दे ।
  • बलि तैयार हो गए तब लक्ष्मी जी ने उनसे विष्णु जी को अपने साथ ले जाने की कामना की। राजा बाली ने लक्ष्मी जी की इच्छा पूर्ण की तब माता लक्ष्मी जी अपने पति भगवान श्री विष्णु जी को वापस अपने साथ ले आयीं।
  • उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से पूरे ब्रह्माण्ड में रक्षाबन्धन का पर्व मनाया जाने लगा। कहते है कि इस ब्रह्माण्ड में सबसे पहले राखी माँ लक्ष्मी ने ही राजा बलि को बाँधी थी ।

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  •  एक अन्य कथानुसार भगवान श्री गणेश जी के दो पुत्र थे शुभ और लाभ । यह दोनों ही भाई, कोई भी बहन के ना होने से उदास रहते थे क्योंकि वह लोग बहन के बिना रक्षाबन्धन का पर्व नहीं मना पाते थे ।
  • एक बार इन दोनों ने अपने पिता भगवान गणपति से बहन की कामना की जिसके साथ वह रक्षा बंधन का पर्व मना सके अपनी कलाइयों में राखी बँधवा सके ।
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  • कुछ समय बाद देवर्षि नारद ने भी गणेश जी से पुत्री के विषय में कहा , तब गणेश जी पुत्री के लिए राजी हुए उन्होंने अपनी पुत्री की कामना अपनी दोनों पत्नियों रिद्धि सिद्दी से कही ।
  • तब रिद्दी सिद्धि की दिव्य ज्योति से संतोषी देवी का अविभार्व हुआ जो जगत में सबके झोली भरने वाली संतोषी माँ के नाम से प्रसिद्द हुई ।
  • उसके बाद शुभ – लाभ अपनी बहन संतोषी माँ के साथ रक्षाबंधन का पवित्र पर्व मनाने लगे। मान्यता है कि जो भी अपनी बहन के साथ रक्षाबन्धन का पर्व प्रसन्नता पूर्वक मनाते है उनके ऊपर शुभ – लाभ और माँ संतोषी की सदैव कृपा बनी रहती है ।
  •  भविष्य पुराण में एक घटना का वर्णन है कि एक बार देव और दानवों में युद्ध शुरू हुआ जिसमें कुछ समय बाद दानव देवताओं पर हावी होने लगे। तब भगवान इन्द्र घबरा कर गुरु बृहस्पति के पास गये और उनसे मदद की याचना की ।
  • इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने अपने पति की रक्षा और युद्ध में विजय के लिए मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके रेशम का धागा अपने पति देवराज इंद्र के हाथ में बाँध दिया। कहते है उस दिन श्रावण पूर्णिमा का दिन था।
  •  ऐसा विश्वास है कि देवराज इन्द्र इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही असुरो से लड़ाई में विजयी हुए थे। तभी से सावन माह की पूर्णिमा के दिन यह रक्षासूत्र / राखी बाँधने की प्रथा चली आ रही है।

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