Sunday, December 1, 2024
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भैरव अष्टमी, bhairav ashtami, bhairav ashtami 2024,

भैरव अष्टमी, bhairav ashtami,

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन भगवान शिव, भैरव रूप में प्रकट हुए थे, अत: इस तिथि को भगवान भैरव नाथ के व्रत व पूजा का विशेष विधान है। इस तिथि को भैरव अष्टमी, bhairav ashtami, के रूप में मनाया जाता है ।

भैरव जयंती पर रात्रि का विशेष महत्त्व होता है । मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि शुक्रवार 22 नवंबर को सांय 6 बजकर 10 मिनट से प्रारम्भ होगी जो अगले दिन शनिवार 23 नवंबर 2024 को रात्रि 7.59 पर समाप्त होगी ।

इस कारण चूँकि शुक्रवार 22 नवंबर को अष्टमी लगने के बाद काल भैरव जी की आराधना के लिए पूरी रात्रि मिल रही है इसी लिए वर्ष 2024 में काल भैरव जयंती शुक्रवार 22 नवम्बर को ही मनाई जाएगी ।

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हर माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भैरव अष्टमी, Bhairav Ashtmi, कालाष्टमी के दिन कालभैरव के भक्त उनकी पूजा और उनके लिए उपवास करते हैं इस दिन भैरव नाथ की सच्चे मन से पूजा, अर्चना और व्रत करने से भैरव नाथ अति प्रसन्न होकर भक्तो पर अपनी कृपा बरसाते है।

शास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान शिव ने अपने त्रिनेत्र से ब्रह्मा जी का झूठा अहंकार खत्म करने के लिए भैरव नाथ को अवतरित किया था।

भगवान भोले शंकर के दो रूप हैं- पहला भक्तों को अभयदान देने वाला विश्वेश्वर स्वरूप और दूसरा दुष्टों को दंड देने वाला काल भैरव स्वरूप।

जहां विश्वेश्वर स्वरूप अत्यंत सौम्य, शांत, अभय प्रदान करने वाला है, वहीं भगवान शिव का भैरव स्वरूप अत्यंत रौद्र, विकराल, प्रचंड है।

शास्त्रों के अनुसार भैरवाष्टमी, bhairav ashtami, या कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव नाथ की पूजा उपासना से सभी शत्रुओं, विपदाओं का नाश होता है और पाप एवं कष्ट दूर होते हैं।

इस दिन श्री कालभैरव जी का दर्शन-पूजन अत्यंत मनवाँछित फलो को प्रदान करने वाला होता है।

मान्यता है कि इस दिन भैरव जी की पूजा व व्रत करने से समस्त विघ्न, भूत, पिशाच एवं काल का भय भी भी दूर होता है।

भगवान शिव के इस रुप भैरव जी की पूजा उपासना करने वाला मनुष्य इनका आश्रय प्राप्त करके निर्भय हो जाता है तथा किसी भी तरह के कष्ट उसके निकट भी नहीं आते है। भैरव नाथ की उपासना क्रूर ग्रहों के सभी बुरे प्रभाव को समाप्त करती है, शनि देव का प्रकोप भी शांत होता है।

एकादशी के इन उपायों से पाप होंगे दूर, सुख – समृद्धि  की कोई कमी नहीं रहेगी 

इनकी साधना करने से सभी प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव अर्थात किसी का भी किया कराया निश्चय ही नष्ट हो जाता हैं। भैरव आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय प्राप्त होती है, जातक निर्भय हो जाता है।
रविवार और मंगलवार के दिन इनकी पूजा बहुत फलदायी है।

हिंदू देवताओं में भैरव जी का विशेष महत्व है यह दिशाओं के रकक्षक और काशी के संरक्षक कहे जाते हैं। चूँकि भैरव जी की उत्पत्ति भगवान शिव से ही हुई है तथा: कई रुपों में विराजमान बटुक भैरव और काल भैरव भी इन्ही का रूप हैं।

भैरव नाथ जी की उपासना पूर्ण विधि विधान करनी चाहिए। भैरव अष्टमी के दिन रात्री में जागरण करते समय इनके मंत्रों का जाप करते रहना चाहिए। भैरवाष्टमी या कालभैरव जयन्ती के दिन भैरव नाथ की प्रसन्नता हेतु इस दिन काले कुत्ते को भोजन कराना शुभ माना जाता है।

शास्त्रों में भैरव जी शिव और दुर्गा के भक्त बताये गए हैं, ये डर उत्पन्न करने वाले नहीं वरन कमजोरों को बल और साहस प्रदान करने वाले एवं उनकी सुरक्षा करने वाले कहे जाते है। भैरव नाथ जी का चरित्र बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक माना गया है।

भैरव नाथ के मंदिरो में काशी और उज्जैन में स्थित भैरव मंदिर का बहुत ही महत्व है। काशी में तो इनको नगर कोतवाल की संज्ञा दी गयी है।

जैसे सभी देवताओं के कुछ ना कुछ अस्त्र शस्त्र प्रिय माने जाते है इसी तरह इनका मुख्य शस्त्र दंड है अत: भैरव नाथ को दंडपति के नाम से भी जाना जाता है। भैरव नाथ को काले उड़द, काले गुलाब जामुन, उड़द के बड़े, नमकीन, मदिरा, काले तिल, लाल अनार आदि विशेष रूप से प्रिय है।

भैरव नाथ जी की मुख्य सवारी स्वान (कुत्ता ) है। भैरव अष्टमी के दिन एक रोटी लेकर उस पर अपनी तर्जनी और मध्यमा अंगुली तेल में डुबोकर लाइन खींचें। यह रोटी दो रंग वाले कुत्ते को खाने के लिए दें।

यदि कुत्ता रोटी खा ले तो समझिए कि कालभैरव जी का आशीर्वाद मिल गया है।
अगर कुत्ता रोटी को सूंघ कर आगे चला जाए ये क्रम जारी रखें।

लेकिन सप्ताह में रविवार, बुधवार व गुरुवार को ही ये उपाय करें क्योंकि ये तीन दिन भगवान कालभैरव के माने गए हैं।

काल अष्टमी के दिन किसी जरूरतमंद को अथवा मंदिर में नमक और सरसो के तेल का दान अवश्य करें । नमक का दान करने से आर्थिक लाभ होता है तथा सरसो के तेल का दान करने से व्यक्ति के समस्त कष्ट दूर होते हैं ।

समस्त शक्तिपीठों के पास भैरव मंदिर अवश्य ही स्थित है ,इन भैरव मंदिरों का भी बहुत महत्व है । मान्यता है कि इन भैरव मंदिरों को स्वयं भगवान शिव ने ही स्थापित किया था।

भैरवाष्टमी के दिन भैरव जी के निम्न मंत्रो का जाप अवश्य ही करना चाहिए , इनसे समस्त मनोकामनाएँ अवश्य ही पूर्ण होती है।

भैरव नाथ के मन्त्र :-

1. ॐ नमो भैरवाय स्वाहा,

2. ॐ भयहरणं च भैरव:,

3. ॐ कालभैरवाय नम:

भैरव अष्टमी के दिन ऐसे करें भैरव नाथ को प्रसन्न समस्त भय और कष्ट होंगे दूर 

पं मुक्ति नारायण पाण्डेय
( कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ )

Published By : Memory Museum
Updated On : 2024-11-18 11:07:55 PM

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