देव दीपावली, क्यों मनाई जाती है, dev dipawali kyon manai jati hai, देव दीपावली 2024,
देवताओं का प्रिय पर्व अति शुभ देव दीपावली, dev dipawali कार्तिक माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है। जब कार्तिक अमावस्या की रात को पृथ्वी लोक में बड़ी धूमधाम से दीपावली मनाई जाती है तो उस दिन दीपावली पूजा में विष्णुप्रिया लक्ष्मी जी के साथ भगवान विष्णु की जगह गणेश जी की पूजा की जाती है।
इसका कारण यह है कि दीपावली चातुर्मास के मध्य पड़ती है, और उस समय भगवान श्री विष्णु चार मास के लिए योगनिद्रा में लीन रहते हैं। अत: दीपावली में लक्ष्मी जी श्रीहरि के बिना पधारती हैं।
देवताओं में प्रथम पूज्य होने के कारण गणेशजी उनके साथ देव-समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। उस दिन कमला जयंती होने के कारण लक्ष्मी जी की पूजा-आराधना प्रमुख होती है।
शास्त्रों के अनुसार, जब देवोत्थान एकादशी को भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं, तब उसके पश्चात कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवता दीपावली मनाते हैं, जिसे देव दिवाली, Dev diwali, कहते है, जिसमें माँ लक्ष्मी भगवान श्री नारायण के साथ विराजती हैं, और उनकी पूजा की जाती है।
वर्ष 2024 में देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा के दिन 15 नवंबर शुक्रवार को मनाई जाएगी ।
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देव दीपावली, Dev Dipawali
शास्त्रों के अनुसार पृथ्वीवासियों द्वारा दीपावली मनाने के एक पक्ष अर्थात 15 दिनों के बाद बाद कार्तिक पूर्णिमा Kartik Purnima पर देवताओं की दीपावली होती है।
मान्यता है कि देव दीपावली Dev Dipawali को मनाने के लिए स्वर्ग से देवता गंगा नदी के पावन घाटों पर अदृश्य रूप में अवतरित होते हैं और सभी देव दीपक जलाते है। देव दीपावली के दिन ही दीपावली समारोह का अंत माना जाता है।

देव दीपावली वाराणसी शहर का प्रमुख त्यौहार है। देव दीपावली के दिन वाराणसी के घाटो पर हजारो दीपक प्रज्जवलित किये जाते है। इस दिन गंगा नदी के तट पर महा गंगा आरती और आतिशबाजी का आयोजन किया जाता है ।
इस दिन काशी के घाटों का इतना सुन्दर नज़ारा होता है के ये घाट किसी देव लोक के समान प्रतीत होते है लगता है कि धरती पर स्वर्ग उतर आता है।
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जब गंगा नदी में दीपक प्रज्ज्वलित करके छोड़े जाते है तो वह दृश्य बहुत ही दिव्य, बहुत अलौकिक होता है । इस दिन देव दीपावली का हिस्सा बनने देश विदेश से हज़ारो भक्त वाराणसी की धरती पर आते है।
माना जाता है कि इस दिन संध्याकाल में जो मनुष्य अपने घरो को दीपक के प्रकाश से प्रकाशित करते है उनके जीवन के सभी अंधकार दूर हो जाते है उन्हें भगवान शिव, विष्णु जी और माँ लक्ष्मी जी की भी पूर्ण कृपा प्राप्त होती है, उनके घर कारोबार में सुख-समृद्धि और हर्ष का वास होता है।
माँ लक्ष्मी ऐसे मनुष्यों के घरों में सदैव स्थाई रूप से निवास करती है ।
इसीलिए इस दिन हर जातक को अपने घर के आँगन,
मंदिर, घर में तुलसी के पौधे,
बेल पत्र, आंवले तथा मंदिर में लगे पीपल के वृक्ष के नीचे,
पानी वाले नल के पास, छत पर,
चारदीवारी पर और घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर दीपक अवश्य ही जलाना चाहिए।
देव दीपावली के दिन देसी घी या तिल के तेल से दीपक जलाना शुभ माना जाता है। अगर मौसम ठंडा हो तो घी की जगह तिल के तेल के दीपक जलाएं क्योंकि ठंडक होने पर घी जम जाता है और दीपक पूरी तरह से जल नहीं पाता है।
इस दिन संध्या के समय प्रदोष काल में एक थाली में दीपक जलाकर पहले उनका पूजन करें फिर ईश्वर से अपने घर परिवार पर कृपा बनाये रखने की प्रार्थना करते हुए उन दीपको से अपने पूरे घर को सजाएं।
दीपक को रखते समय प्रत्येक दीपक के नीचे थोड़े से अक्षत के दाने रखकर दीपक को आसन अवश्य ही दें।
इस दिन किसी भी शिव मंदिर में शिवलिंग के निकट दीप जरूर जलाना चाहिए, यह कोशिश रहे की दीपक रात भर जलता रहे, इससे भगवान भोले नाथ, भगवान त्रिपुरारी शंकर जी की कृपा प्राप्त होती है,
जिसके फलस्वरूप जातक के परिवार से रोग, दुर्घटना, और अकाल मृत्यु का भय दूर होता है ।

मान्यता है कि देव दीपावली के दिन दीपक दान करते हुए दीपक का मुख पूर्व या पश्चिम दिशा की ओर रखा जाना चाहिए। एक बात का और ध्यान रखे कि दीपक जलाते समय सर पर को किसी कपड़े, चुनरी या रूमाल से अवश्य ही ढकें ।
इस दिन कुछ विशेष प्रयोजनों के लिए भी दीपक जलाये जाते है ।
जैसे इस दिन दो मुखी दीपक जलाने से आयु लंबी होती है।
देव दीपावली के दिन तीन मुखी दीपक जलाने से घर पर किसी की भी बुरी नजर नहीं पड़ती है।
देव दीपावली के दिन छह मुखी दीपक जलाने से घर में सुख शांति आती है, श्रेष्ठ संतान जह लेती है, संतान गुणवान, संस्कारी और आज्ञाकारी होती है ।
इस प्रकार जो भी जातक देव दीपावली के दिन अपने घर को प्रसन्नता पूर्वक दीपमाला से सजाते है उनपर देवताओं का पूर्ण आशीर्वाद होता है उनके लिए दुर्लभ से दुर्लभ वस्तु भी असाध्य नहीं होती है।

ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय
( कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ )