किस देवता की कितनी परिक्रमा करें
हिन्दु धर्म में देवी देवताओं की पूजा अर्चना के साथ साथ उनकी परिक्रमा का भी बहुत महत्व बताया गया है । अपने दक्षिण भाग की ओर से चलना / गति करना परिक्रमा कहलाता है। परिक्रमा में व्यक्ति का दाहिना अंग देवता की ओर होता है। हमेशा ध्यान रखें कि परिक्रमा सदैव दाएं हाथ की ओर से ही प्रारंभ करनी चाहिए, क्योंकि दैवीय शक्ति के आभामंडल की गति दक्षिणावर्ती होती है।
बाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर दैवीय शक्ति के आभामंडल की गति और हमारे अंदर विद्यमान परमाणुओं में टकराव पैदा होता है, जिससे हमारा तेज नष्ट हो जाता है। जबकि दाएं हाथ की ओर से परिक्रमा करने पर उस देवी / देवता की कृपा आसानी से प्राप्त होती है। सभी देवी-देवताओं की परिक्रमा की संख्या अलग-अलग बताई गई है जैसे –
– शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश जी की तीन परिक्रमा करने का विधान है । इसको करने से श्री गणेश जी अपने भक्तो के सभी विघ्न दूर करते हुए उन्हें सुख समृद्धि प्रदान करते है ।
– इसी तरह भगवान भोलेनाथ अर्थात शिवजी भगवान की आधी परिक्रमा करने का विधान है। भगवान भोलेनाथ अपने नाम के ही अनुसार बहुत ही भोले है और बहुत ही जल्द प्रसन्न होते हैं । भोलनाथ अपनी मात्र आधी परिक्रमा से ही प्रसन्न हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार भगवान शंकर की प्रदक्षिणा में सोम सूत्र अर्थात भगवान शिव को चढ़ाया गया जल जिस ओर गिरता है, उसे लाँघना नहीं चाहिए , वहीँ से वापस हो जाना चाहिए ।
– माताजी की एक/तीन परिक्रमा की जाती है। माता अपने भक्तों को शक्ति प्रदान करती है। इसके अलावा अन्य किसी भी देवियों की एक ही परिक्रमा करने का विधान है|
– सृष्टि के पालनकर्ता भगवान नारायण, श्री हरि अर्थात् विष्णु की चार परिक्रमा करने पर अनन्त पुण्य प्राप्त होता है।
– इस सृष्टि के एक मात्र प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य की सात परिक्रमा करने पर व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं जल्द ही पूरी हो जाती है।
– संकटमोचन, प्रभु श्रीराम के सबसे प्रिय श्री हनुमानजी की तीन परिक्रमा करने का विधान बताया गया है।इसलिए हनुमान भक्तों को इनकी तीन परिक्रमा ही करनी चाहिए।
– शनिदेव की सात परिक्रमा करने का विधान है ।
– पीपल को बहुत ही पवित्र मानते है । इस पर 33 करोड़ देवी देवताओं का वास माना जाता है । पीपल की परिक्रमा से ना केवल शनि दोष वरन सभी तरह के ग्रह जनित दोषो से छुटकारा मिलता है । पीपल की 7 परिक्रमा करनी चाहिए ।
– जिन देवताओं की परिक्रमा की संख्या का विधान मालूम न हो, उनकी तीन परिक्रमा की जा सकती है। तीन परिक्रमा के विधान को सभी जगह स्वीकार किया गया है ।
– सोमवती अमावस्या के दिन मंदिरों में देवता की 108 परिक्रमा को विशेष फलदायी बताया गया है ।
– जहाँ मंदिरों में परिक्रमा का मार्ग न हो वंहा भगवान के सामने खड़े होकर अपने पांवों को इस प्रकार चलाना चाहिए जैसे की हम चल कर परिक्रमा कर रहे हों।
ये भी ध्यान रखें…
परिक्रमा करते समय बीच-बीच में रुकना नहीं चाहिए।परिक्रमा बीच में रोकने से वह पूर्ण नही मानी जाती है । परिक्रमा हाथ जोड़कर उनके किसी भी मन्त्र का जाप करते हुए करनी चाहिए, और परिक्रमा लगाते हुए, देवता की पीठ की ओर पहुंचने पर रुककर देवता को नमस्कार करके ही परिक्रमा को पूरा करना चाहिए।
परिक्रमा के दौरान किसी से बातचीत नहीं करनी चाहिए वरन जिस देवता की परिक्रमा कर रहे हैं, उनका ही ध्यान करना चाहिए । परिक्रमा वहीं पूरी होती है जहां से परिक्रमा प्रारंभ की जाती है। अधूरी परिक्रमा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है।
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