करवा चौथ की कथा, Karva Chauth Ki Katha, Karva Chauth 2024,

करवा चौथ की कथा, Karva Chauth Ki Katha, Karva Chauth 2024,

 करवा चौथ की कथा, Karva Chauth Ki Katha, की एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार पांडवों के बनवास के समय  पाण्डु पुत्र अर्जुन तप करने इंद्रनील पर्वत की ओर चले गए और बहुत दिनों तक वापस नहीं आये तो उनके लम्बे समय तक वापस न लौटने पर द्रौपदी उनकी चिंता में बहुत व्याकुल हो गयी ।

तब श्रीकृष्ण भगवान ने आकर द्रौपदी को करवा चौथ के व्रत के महत्व के बारे में बताया तथा इस संबंध में जो करवा चौथ की कथा, Karva Chauth Ki Katha, भगवान शिवजी ने माता पार्वती को सुनाई थी, वह कथा भी सुनाई।

उस कथा के अनुसार……..

प्राचीन समय में इंद्रप्रस्थ नगरी में वेद शर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मण अपने सात पुत्र तथा योग्य पुत्री वीरावती  निवास करता था। उन्होंने अपनी पुत्री वीरावती का विवाह सुदर्शन नामक एक ब्राह्मण के साथ किया ।

वेद शर्मा के सभी पुत्र भी विवाहित थे। शादी के बाद वीरावती जब अपने माता-पिता के यहाँ अपने मायके में थी तब एक बार करवा चौथ के व्रत के समय वीरावती और उनकी भाभियों ने पूर्ण विधि से व्रत किया, किंतु दोपहर होते होते वीरावती सारा दिन निर्जल रहने के कारण भूख प्यास के कारण निढाल हो गई।

 सातों भाइयों की इकलौती लाड़ली बहन का हाल उसके भाइयों से देखा नहीं गया तब उन्होंने वीरवती को जल्दी खाना खिलाने के लिए बाहर खेतों में जाकर आग जलाई तथा ऊपर कपड़ा तानकर चंद्रमा के उदय होने जैसा दृश्य बना दिया और अपनी बहन से जाकर कहा कि चांद निकल आया है, तुम चन्द्रमा को अर्ध्य दे कर अपना ब्रत पूर्ण कर लो।

वीरवती को सच मालूम नहीं था उसने यह देखकर चन्द्रमा को अर्ध्य देकर अपना ब्रत पूरा किया और खाना खा लिया। लेकिन नकली चंद्रमा को अर्ध्य देने के कारण उसका व्रत खंडित हो गया जिसके परिणाम स्वरूप उसके पति की तबियत अचानक बहुत ही ख़राब हो गयी । और वीरवती ने ससुराल पहुँचने के बाद अपने पति के मृत शरीर को पाया। अपने पति के मृत शरीर को देखकर वीरावती विलाप करने लगी ।

 उसी समय  इंद्र की पत्नी इंद्राणी करवा चौथ के ब्रत को करने के लिए पृथ्वी पर आईं। उनके पृथ्वी पर आने का पता लगने पर वीरावती ने इंद्राणी के पास जाकर प्रार्थना की कि हे माँ आप मेरे  पति के ठीक होने का उपाय बताएं। तब इंद्राणी ने कहा कि हे वीरवती तेरे पति की यह दशा तेरे करवा चौथ के व्रत के खंडित हो जाने के कारण हुई है और उसे सारा हाल बतलाया ।

यह सुनकर वीरवती ने अपने भाइयों की करनी के लिए क्षमा मांगी। तब इन्द्राणी ने कहा कि तुम्हारा पति फिर से ठीक हो जाएगा लेकिन इसके लिए तुम्हें करवा चौथ का व्रत पूरे विधि-विधान से करना होगा। इसके बाद उन्होंने उसे करवा चौथ के व्रत की पूरी विधि बताई तब वीरावती ने उनके कहेनुसार पूर्ण विधि से करवा चौथ का व्रत संपन्न किया जिसके फलस्वरूप भगवान की कृपा से उसका पति बिलकुल ठीक हो गया। यह करवा चौथ का व्रत उसी समय से प्रचलित है।

अतः सौभाग्यवती स्त्रियों को अपने सौभाग्य, घर में सुख समृद्धि ,  धन-धान्य, पुत्र-पौत्रादि के लिए यह ब्रत पूर्ण विधि विधान से करना चाहिए।  इसके पश्चात उन्हें ब्राह्मण, सुहागिन स्त्रियों व पति के माता-पिता को भोजन कराना चाहिए।

भोजन के पश्चात ब्राह्मणों को यथाशक्ति दक्षिणा एवं पति की माता (अर्थात अपनी सास ) को उपहार स्वरूप वस्त्र, फल, मिठाई , नकद रूपए और विशेष करवा भेंट कर आशीर्वाद अवश्य ही लेना चाहिए ।

यदि वे जीवित न हों तो उनके तुल्य किसी अन्य स्त्री को यह भेंट करें। इसके पश्चात ही स्वयं व परिवार के अन्य सदस्य भोजन करें।