Sunday, November 24, 2024
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रक्षाबंधन का महत्व, Raksha Bandhan ka mahtv, Raksha Bandhan 2024,

रक्षाबंधन का महत्व, Raksha Bandhan ka mahtv, Raksha Bandhan 2023,

शास्त्रों में बहुत जगह रक्षाबंधन का महत्व ( Raksha Bandhan ka mahtv) बताया गया है। धार्मिक ग्रंथो में बहुत जगह उल्लेख आया है कि देवता भी इस पर्व को हर्ष उल्लास के साथ मनाते है। मान्यता है कि सावन माह की पूर्णिमा के दिन शुभ मुहूर्त में बाँधा गया रक्षासूत्र का प्रभाव बहुत शक्तिशाली होता है।


बहनो द्वारा अपनी भाइयों की कलाई में बाँधी गयी इस राखी के प्रभाव से भाइयों की हर संकटो से निश्चय ही रक्षा होती है , उन्हें देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। विभिन्न युगो, कालखंडो में भी इस पर्व के मनाये जाने के बारे में पता चलता है।

रक्षाबंधन का महत्व, Raksha Bandhan ka mahtv,

  • शास्त्रों में रक्षा बंधन के संदर्भ में मृत्यु के देवता भगवान यम और उनकी बहन यमुना का एक प्रसंग मिलता है । पौराणिक कथाओं के अनुसार यमराज और यमुना जी भगवान सूर्य देव की संतान है। यमुना जी बहन के रूप में अपने भाई यम से स्नेह पाना चाहती थी।
  • कहते है इसीलिए यमुना जी ने एक बार यमराज की कलाई पर धागा बांधा था। भगवान यम, यमुना की इस बात से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने यमुना की रक्षा का वचन देने के साथ ही यमुना को अमरता का वरदान भी दे दिया।
  • इसी लिए मान्यता है कि जो भी बहन रक्षाबंधन के दिन अपने भाई को प्रेम पूर्वक राखी बाँधती है उसकी सभी आपदाओं से रक्षा होती है।
  •  विष्णु पुराण के एक और प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर समस्त वेदों को ब्रह्मा जी के लिये फिर से प्राप्त किया था। शास्त्रों में हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है।
  •  रक्षाबंधन ( Rakshabandhan ) के बारे में हिन्दुओं के प्रमुख ग्रन्थ महाभारत में भी उल्लेख है। महाभारत के युद्द से पहले कौरवो की बड़ी सेना देखकर जब धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं कौरवो की विशाल सेना पर कैसे विजय प्राप्त कर सकता हूँ, सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूँ ।

    तब भगवान कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा, युद्द में विजय के लिये रक्षाबन्धन का पर्व मनाने की सलाह दी ।
  •  भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि राखी के इस रेशमी धागे , इस रक्षा सूत्र में वह शक्ति है जिससे आपकी सेना विजयी होती तथा आपलोगो की सभी आपत्तियों से रक्षा होगी,। महाभारत में द्रौपदी द्वारा भगवान कृष्ण को राखी बाँधने के भी कई उल्लेख मिलते हैं।
  •  महाभारत में ही रक्षाबन्धन से सम्बन्धित कृष्ण और द्रौपदी की एक कथा के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई और खून बहने लगा ।
  • यह देखकर द्रौपदी ने उसी समय बिना समय गँवाये अपनी साड़ी को फाड़कर श्रीकृष्ण जी की उँगली पर पट्टी बाँध दी। वह श्रावण मास की पूर्णिमा का ही दिन था। द्रोपदी के इसी स्नेह को देखकर वासुदेव ने द्रोपदी को उसकी रक्षा का वचन दिया।
  •  और यह सर्व विदित है कि श्रीकृष्ण जी ने द्रोपदी के इस उपकार का बदला बाद में भरी सभा में दुःशासन द्वारा द्रोपदी के चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया। और महाभारत के युध्द में भी पांडवो का ही साथ दिया मान्यता है। की एक दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना यहीं से रक्षाबन्धन के पर्व में प्रारम्भ हुई थी ।
  •  कालांतर में यूनान के मकदूनिया के शासक बादशाह फिलिप का बेटा सिकंदर यूनान से विश्व विजय के लिए चला और भारत आ पहुँचा । वहाँ पर चेनाब नदी के क्षेत्रो में राजा पुरु का शासन था जो बहुत ही महान योद्धा था।
  • एक प्रसंगानुसार सिकन्दर की पत्नी ने राजा पुरु की वीरता और विशाल सेना के बारे में सुनकर अपने पति की रक्षा के लिए राजा पुरू को राखी बाँधकर उन्हें अपना मुँहबोला भाई बनाया और उनसे युद्ध के समय सिकन्दर को न मारने का वचन ले लिया।

    इतिहासकार कहते है कि युद्ध के दौरान बहन को दिये हुए वचन के सम्मान, और अपने हाथ में बँधी राखी के कारण वीर राजा पुरु ने सिकन्दर को जीवन-दान दे दिया था ।
  •  मध्यकाल में रक्षाबंधन ( Rakshabandhan ) का पर्व उत्तर भारत में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाने लगा। इस रेशमी धागे / रक्षासूत्र के प्रति धारणा इतनी बलवती थी कि कहते है कि जब भी राजपूत लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएँ हाथ में रेशमी धागा बाँधकर उनके माथे पर कुमकुम का तिलक लगाती थी।

    उन्हें विश्वास था कि यह धागा / रक्षासूत्र उनके वीरो को विजय दिलवाकर उन्हें सकुशल वापस ले आयेगा।
  •  मध्यकाल में ही राखी के साथ एक बहुत प्रसिद्ध कहानी जुड़ी है। बताया जाता है कि राजस्थान में मेवाड़ पर बहादुरशाह ने हमला कर दिया उस समय वहाँ पर रानी कर्मावती को जब यह खबर मिली तो वह बहादुरशाह की ताकत के कारण उसके हमले से परेशान हो गयी।

    तब रानी ने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेज कर उनसे मदद माँगी और उनसे अपने राज्य की रक्षा की याचना की।
  • बादशाह हुमायूँ ने मुसलमान होने के बाद भी राखी की लाज निभाई और मेवाड़ में पहुँच कर मेवाड़ की ओर से बहादुरशाह के विरूद्ध लड़ते हुए रानी कर्मावती व उसके राज्य की रक्षा की।

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