आप सभी को महा शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें ।
Shiv Darbar, शिव दरबार,
भगवान शिव के परिवार ( Bhagwan shiv ke pariwar ) के बारे में तो आप सभी जानते ही होंगे लेकिन क्या आप जानते है की भगवान शंकर के दरबार अर्थात शिव दरबार ( shiv darbar ) में कौन कौन है, भगवान शिव के गण, ( Bhagwan shiv ke gan ), भगवान शिव के द्वारपाल, ( Bhagwan shiv ke dwarpal ) भगवान शिव की पंचायत के सदस्य आदि के बारे में आप जानते है ? नहीं ? तो अपने आराध्य के बारे में अधिक से अधिक और उपयोगी जानकारी अवश्य ही प्राप्त करें ।
जानिए भगवान शिव के दरबार Shiv ke Darbar, में कौन कौन प्रमुख सदस्य है……..
शिव दरबार, Shiv Darbar,
भगवान शिव के दरबार में कई गण है । उनके गणों में भैरव जी को सबसे प्रमुख माना जाता है। उसके बाद नंदी और फिर वीरभ्रद्र का नंबर आता है । जहां भी शिव मंदिर स्थापित होता है, वहां रक्षक (कोतवाल) के रूप में भैरवजी की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है।
- भैरव दो हैं- काल भैरव और बटुक भैरव। शास्त्रों के अनुसार वीरभद्र शिव का एक बहादुर गण था जिसने शिव के आदेश पर दक्ष प्रजापति का सर धड़ से अलग कर दिया।
देव संहिता और स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव शंकर ने ‘वीरभद्र’ नामक गण को अपनी जटा से उत्पन्न किया था।
- इसके अलावा, पिशाचो, दैत्यों नाग-नगीनो, और पशुओं को भी भगवान शिव का गण माना जाता है। ये सभी गण लगातार धरती और ब्रह्मांड में विचरण करते रहते हैं और प्रत्येक मनुष्य, प्रत्येकआत्मा आदि की पूरी खोज-खबर रखते हैं।
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- भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय इनके प्रमुख गण माने गए है ।
- भगवान शिव के द्वारपालों में नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल प्रमुख है। उल्लेखनीय है कि शिव के गण और द्वारपाल नंदी ने ही कामशास्त्र की रचना की थी। कामशास्त्र के आधार पर ही कामसूत्र लिखा गया था।
- बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि भगवान शिव के पार्षद कहलाते हैं। इनमें नंदी जी और भृंगी जी गण भी, द्वारपाल भी, और पार्षद भी तीनो भूमिका में है ।
- भगवान शिव के साथ हमेशा उनके गले से लिपट कर रहने वाले नाग का नाम वासुकी है। पुराणों के अनुसार यह नागों के राजा हैं और नागलोक पर इनका शासन है। समुद्र मंथन के समय नागराज वासुकी ने ही रस्सी का काम किया था जिससे समुद्र को मथा गया था।
- शास्त्रो के अनुसार नागराज वासुकी भगवान शिव के परम भक्त थे। भगवान भोले ने इनकी भक्ति से प्रसन्न होकर ही ना केवल इन्हें नागलोक का राजा बना दिया वरन इन्हें अपने गले में आभूषण की भाँति लिपटें रहने का वरदान भी दिया।
- नागराज वासुकि से आगे कई नागवंश आरंभ हुए । शेषनाग के बाद वासुकी नाग को नागों का दूसरा सबसे बड़ा राजा माना जाता है। इनके बाद तक्षक तथा पिंगला नाग हुए। तक्षक नाग ने ही प्राचीन तक्षकशिला (जिसे तक्षशिला के नाम से अधिक जाना जाता है ) नगर की स्थापना की थी।
- भगवान शिव की पंचायत भी है। इस पंचायत का फैसला अंतिम माना जाता है। देवताओं और दैत्यों के झगड़े आदि के बीच जब कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेना होता था तो शिव की पंचायत का फैसला अंतिम होता है। शिव की पंचायत में 5 देवता शामिल है।
- 1. सूर्य, 2. गणपति, 3. देवी, 4. रुद्र और 5. विष्णु ये शिव पंचायत के सदस्य कहलाते हैं।
- देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देव जी भगवान शिव के प्रिय मित्र है। मान्यता है कि कुबेर जी भगवान शिव के भक्तो को सभी सुख और ऐश्वर्य प्रदान करते है ।
- शिव ने जिस धनुष को बनाया था उसकी टंकार से ही बादल फट जाते थे और पर्वत हिलने लगते थे उसका नाम पिनाक था। या धनुष इतना शक्तिशाली था कि इसके एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरी ध्वस्त हो गयी थी।
- शास्त्रों के अनुसार एक बार राजा दक्ष के यज्ञ में यज्ञ का भाग शिव को नहीं देने के कारण भगवान शंकर बहुत क्रोधित हो गए थे और उन्होंने अपने पिनाक धनुष से सभी देवताओं को नष्ट करने की ठान ली। उनके धनुष की टंकार से पूरा ब्रह्माण्ड हिलने लगा। फिर बड़ी मुश्किल से उनका क्रोध शांत किया गया। उसके बाद भगवान शिव ने यह धनुष देवताओं को दे दिया।

- देवताओं से यह धनुष राजा जनक के पूर्वज निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवरात के पास आया। शिव-धनुष उन्हीं की धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था।
- भगवान शंकर के इस विशालकाय धनुष को कोई भी उठाने की क्षमता नहीं रखता था। लेकिन भगवान राम ने इसे उठाकर इसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और इसे एक झटके में तोड़ दिया।
- पुराणों में भगवान शिव के हाथो में एक अस्त्र सदैव दिखाया गया है वह है त्रिशूल। त्रिशूल बहुत ही अचूक और घातक अस्त्र है जो दैनिक, दैविक, भौतिक तीनो प्रकार के कष्टो को समाप्त करता है।
- इसी त्रिशूल से भगवान शंकर ने शंखचूर का वध किया था। इसी त्रिशूल से उन्होंने गणेश जी का सिर काटा था और इसी त्रिशूल से शिवजी भगवान ने वाराह अवतार में मोह के जाल में फंसे विष्णु जी का मोह भंग कर उन्हें बैकुण्ठ में जाने के लिए विवश किया था। यह त्रिशूल भगवान शंकर के पास कैसे आया इसके बारे में कही पर भी कोई जानकारी नहीं मिलती है।
- मान्यता है की सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मनाद से जब भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए तो उनके साथ ही रज, तम, सत यह तीनों गुण भी प्रकट हुए। यही तीनों गुण भगवान शंकर के त्रिशूल के तीन शूल बन गए । इन तीनो गुणों के बीच में सांमजस्य बनाए बगैर सृष्टि का संचालन बहुत ही दुष्कर था, इसलिए भगवान शिव ने इन तीनों गुणों को त्रिशूल रूप में अपने हाथों में धारण कर लिया ।
- भगवन शिव के हाथों में सदैव डमरू भी नज़र आता है। भगवान भोले नाथ के हाथ में डमरू के आने की कथा भी बहुत अनोखी है। शास्त्रो के अनुसार सृष्टि के आरंभ में जब कला और संगीत के देवी सरस्वती प्रकट हुई तब देवी ने अपनी वीणा को बजाकर उससे सृष्टि में ध्वनि उपन्न किया लेकिन इस ध्वनि में सुर और संगीत दोनों ही नहीं थे ।
- तब भगवान भोलेनाथ ने नृत्य करते हुए अपने डमरू को चौदह बार बजाया, कहते है इसी ध्वनि से व्याकरण और संगीत के धन्द, ताल का जन्म हुआ। इस डमरू का आकार रेत घड़ी जैसा है जो दिन रात और समय के संतुलन का प्रतीक है। सृष्टि में संतुलन के लिए ही इसे भगवान शिव डमरू को अपने साथ लेकर प्रकट हुए थे।
- वृषभ भगवान शिव का वाहन है, एक मान्यता के अनुसार वृषभ को नंदी भी कहा जाता है, जो शिव के एक गण हैं। वे हमेशा शिव के साथ रहते हैं।
- वृषभ का अर्थ धर्म है। मनुस्मृति के अनुसार ‘वृषो हि भगवान धर्म:’।
- वेद में धर्म को 4 पैरों वाला प्राणी कहा है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष उसके 4 पैर हैं और भगवान भोलेनाथ 4 पैर वाले इस वृषभ की सवारी करते हैं अर्थात धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष यह चारो ही भगवान शंकर के अधीन हैं।
- भोलेनाथ के गण, नंदी ने ही धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र की रचना की थी।
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