बौध गया मंदिर
Buddha Gaya Mandir
बिहार राज्य में हिन्दुओ के प्रमुख तीर्थ गया से सटा बौध गया एक छोटा किन्तु प्रमुख शहर है। बौध धर्म में बौध गया को अत्यन्त पवित्र एवं प्रमुख तीर्थ माना गया है। कहते हैं कि करीब 500 ई0 पू0 गौतम बुद्ध यहीं पर फाल्गु नदी के तट पर बोधि पेड़ के नीचे तपस्या करने बैठे थे, इसी पेड़ के नीचे उन्हे ज्ञान की प्राप्ति हुयी थी जिसके बाद वह भगवान बुद्ध कहलाने लगे तभी से यह स्थल बौध धर्म के अनुयायीयों के लिये अत्यन्त श्रद्धा एवं भक्ति का केन्द्र बन गया है।
ज्ञान प्राप्ति के बाद वे अगले सात सप्ताह तक उरुवेला के नजदीक ही चिंतन करते रहे इसके बाद सर्वप्रथम सारनाथ जा कर उन्होने वहाँ पर अपना पहला प्रवचन दिया तथा बौध धर्म का प्रचार प्रसार शुरु किया।
जिस स्थान में भगवान बुद्ध ने वैशाख महीने में पूर्णिमा के दिन ज्ञान प्राप्त किया था वह स्थान बौध गया तथा वह दिन बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।
बौध गया का सबसे प्रमुख मन्दिर महा बोधि मन्दिर है। ऐसा विश्वास है कि महाबोधि मन्दिर में स्थापित बुद्ध की मूर्ति का संबध साक्षात भगवान बुद्ध से है। एक बार भगवान बुद्ध एक बौध भिक्षु के सपने में आये और कहा कि इस मूर्ति का निर्माण स्वंय उन्होने हीे किया है। भगवान बुद्ध की इस मूर्ति को बौध धर्म में सर्वधिक प्रतिष्ठा प्राप्त है तथा नालन्दा और विक्रमशिला के बौध मन्दिरों में भी इसी का प्रतिरुप स्थापित है। सन् 2002 में यूनेस्को ने इस मन्दिर एवं क्षेत्र को विश्व विरासत स्थल घोषित किया है।
कहते है कि भगवान बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के लगभग 250 साल बाद सम्राट अशोक बौध गया आये थे तथा उन्होने हीे महाबोधि मन्दिर का निर्माण कराया था। यह मन्दिर यहाँ का प्रमुख मन्दिर है। इस मन्दिर में भगवान बुद्ध की पदमासन की मुद्रा में एक बहुत बड़ी मूर्ति स्थापित है। कहते है कि यहाँ मूर्ति उसी जगह स्थापित है जहाँ भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। मन्दिर के चारों ओर पत्थर की शानदार नक्काशीदार रेलिंग बनी है जो बौधगया में प्राप्त सबसे प्राचीन अवशेष है। इस मन्दिर के दक्षिण पूर्व में एक सुन्दर पार्क है जहाँ बौध भिक्षु ध्यान साधना करते है। इस मन्दिर परिसर में उन सात स्थानों को भी चिन्हित किया गया है जहाँ बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद सात सप्ताह व्यतीत किये थे। वह बोधि वृक्ष (पीपल का वृक्ष) जिसके नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था मुख्य मन्दिर के पीछे स्थित है, वर्तमान मंे उस बोधि वृक्ष की पाँचवी पीढ़ी है।
मुख्य मन्दिर के पीछे भगवान बुद्ध की लाल बलुए पत्थर की 7 फिट ऊँची मूर्ति है जो विजरासन मुद्रा में स्थापित है। कहते है कि तीसरी ई0 पू0 में सम्राट अशोक ने यहाँ पर हीरे से बना राज सिंहासन लगवाया था तथा इसे पृथ्वी का नाभि केन्द्र कहा था। इस मूर्ति के आगे भूरे बलुए पत्थर पर बुद्ध के विशाल पद चिन्ह बने है जिन्हे धर्मचक्र परिवर्तन का प्रतीक भी माना गया है।
यहाँ पर इसके अतिरिक्त तिब्बतियन मठ बर्मी विहार, जापानी मन्दिर, चीनी मन्दिर, थाई मठ, भूटानी मठ एवं वियतनामी मन्दिर भी अति दर्शनीय है।
बौध गया में प्रत्येक वर्ष लाखों लोग विश्व के कोने कोने से यहाँ आकर भगवान बुद्ध के शान्त एवं दिव्य स्वरुप के दर्शन कर असीम सुख एवं शान्ति का अनुभव करते है।
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