Shaniwar Ka Panchang, शनिवार का पंचांग, 9 November 2024 ka Panchang,
- Panchang, पंचाग, ( Panchang 2024, हिन्दू पंचाग, Hindu Panchang ) पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-
1:- तिथि (Tithi)
2:- वार (Day)
3:- नक्षत्र (Nakshatra)
4:- योग (Yog)
5:- करण (Karan)
पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे ।
जानिए शनिवार का पंचांग, (Shanivar Ka Panchang), आज का पंचांग, aaj ka panchang,।
- शनिवार का पंचांग, (Shanivar Ka Panchang, )
9 नवंबर 2024 का पंचांग, 9 November 2024 ka Panchang,
- शनि देव जी का तांत्रिक मंत्र – ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।।
।। आज का दिन मंगलमय हो ।।
- दिन (वार) -शनिवार के दिन क्षौरकर्म अर्थात बाल, दाढ़ी काटने या कटाने से आयु का नाश होता है । अत: शनिवार को बाल और दाढ़ी दोनों को ही नहीं कटवाना चाहिए।
- शनिवार के दिन प्रात: पीपल के पेड़ में दूध मिश्रित मीठे जल का अर्ध्य देने और सांय पीपल के नीचे तेल का दीपक जलाने से कुंडली की समस्त ग्रह बाधाओं का निवारण होता है ।
अगर धन की लगातार परेशानी रहती है, धन नहीं रुकता हो, सर पर कर्ज चढ़ा तो अवश्य करें ये उपाय
- शनिवार के दिन पीपल के नीचे हनुमान चालीसा पड़ने और गायत्री मन्त्र की àएक माला का जाप करने से किसी भी तरह का भय नहीं रहता है, समस्त बिग़डे कार्य भी बनने लगते है ।
- शिवपुराण के अनुसार शनि देव पिप्लाद ऋषि का स्मरण करने वाले, उनके भक्तो को कभी भी पीड़ा नहीं देते है इसलिए जिन के ऊपर शनि की दशा चल रही हो उन्हें अवश्य ही ना केवल शनिवार को वरन नित्य पिप्लाद ऋषि का स्मरण करना चाहिए।
शनिवार के दिन पिप्पलाद श्लोक का या पिप्पलाद ऋषि जी के केवल इन तीन नामों (पिप्पलाद, गाधि, कौशिक) को जपने से शनि देव की कृपा मिलती है, शनि की पीड़ा निश्चय ही शान्त हो जाती है ।
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* विक्रम संवत् 2081,
* शक संवत – 1946,
* कलि संवत 5126,
* अयन – दक्षिणायन,
* ऋतु – शरद ऋतु,
* मास – कार्तिक माह,
* पक्ष – शुक्ल पक्ष,
*चंद्र बल – मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, मकर, मीन,
शनिवार को शनि महाराज की होरा :-
प्रात: 6.39 AM से 7.33 AM तक
दोपहर 12.59 PM से 1.53 PM तक
रात्रि 19.41 PM से 8.47 PM तक
शनिवार को शनि की होरा में अधिक से अधिक शनि देव के मंत्रो का जाप करें । श्रम, तेल, लोहा, नौकरो, जीवन में ऊंचाइयों, त्याग के लिए शनि की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।
शनिवार के दिन शनि की होरा में शनि देव देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में शनि ग्रह मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।
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शनि देव के मन्त्र :-
ॐ शं शनैश्चराय नमः।
अथवा
ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।
- तिथि (Tithi)- अष्टमी 22.45 PM तक तत्पश्चात नवमी ।
- तिथि का स्वामी – अष्टमी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ जी और नवमी तिथि की स्वामिनी माँ दुर्गा जी है ।
अष्टमी तिथि के स्वामी भगवान शिव कहे गए है। अष्टमी तिथि को भगवान शिव की विधि पूर्वक पूजा भोलेनाथ जी प्रसन्न होते है भक्तो को समस्त सिद्धियां प्राप्त होती है। अष्टमी तिथि को…….
श्री शिवाये नमस्तुभ्यंम, एवं
ॐ नम: शिवाये मन्त्र का अधिक से अधिक जाप अवश्य करें ।
अष्टमी तिथि को पूजा में शंकर जी को नारियल का भोग अर्पित करें अथवा शिवजी भगवान के लिए बनाए जाने वाले प्रसाद में नारियल का उपयोग करें लेकिन अष्टमी को नारियल का सेवन नहीं करना चाहिए ।
अष्टमी तिथि का नाम कलावती कहा गया है। जिस पक्ष में अष्टमी तिथि मंगलवार के दिन पडती है. तो उस दिन यह सिद्धिद्दा योग अर्थात अति शुभ योग बनाती।
अष्टमी तिथि जया तिथियों की श्रेणी में आती है मान्यता कि अष्टमी तिथि में किये गए समस्त कार्यो में निसंदेह रूप से सफलता मिलती है ।
लेकिन चैत्र महीने के दोनों पक्षों में पड़ने वाली अष्टमी तिथि शून्य कही गई है।
अष्टमी तिथि को दुर्गा जी की आराधना भी शुभ मानी गई है । अष्टमी तिथि में जन्मे जातकों को भगवान शिव और मां दुर्गा की पूजा अवश्य करनी चाहिए, ऐसा करने से जातक को निर्भयता आती है, जीवन से सभी संकट दूर होते है ।
अष्टमी तिथि में किसी भी प्रकार की ललित कला और विद्याएं सीखना अत्यन्त शुभ माना गया है।
अष्टमी तिथि के दौरान भी बहुत से त्यौहार मनाए जाते हैं । इस अष्टमी तिथि में अहोई अष्टमी, गौरी अष्टमी, राधाअष्टमी, शीतला अष्टमी जैसे त्यौहार मनाए जाते हैं ।
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कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। यह त्योहार मथुरा, वृन्दावन तथा ब्रज के अन्य क्षेत्रों में विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
हिन्दु धर्म शास्त्रों के अनुसार, ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिये भगवान श्री कृष्ण जी ने गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी ऊँगली पर उठा लिया था। लगातार सात दिनों तक वर्षा करने के पश्चात् इन्द्र देव ने गोपाष्टमी के दिन अपनी पराजय स्वीकार की थी ।
जिस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अपनी उंगली में गोवर्धन पर्वत को उठाया था वह कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि थी उस दिन गोवर्धन पूजा की जाती है,
और 7 दिनों के बाद जिस दिन इंद्र देव ने अपनी पराजय स्वीकार की और श्री कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत को वापस जमीन पर रख दिया था वह कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी उस दिन गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाता है ।
गोपाष्टमी पर गायों तथा उनके बछड़ों को सजाया जाता है तथा उनकी पूजा की जाती है, उन्हें अच्छे अच्छे पकवान / घी की रोटी खिलाई जाती है, फल अर्पण किए जाते है, हरा चारा, हरी सब्जी खिलाई जाती है ।
मान्यता है कि गोपाष्टमी के दिन गायों की पूजा, अर्चना करने, उन्हें भोजन कराने, फल, हरा चारा खिलाने से घोर से घोर संकट दूर होते है, कुंडली के अनिष्ट ग्रह शांत होते है, सोचे हुए कार्य पूरे होते है, शुभ समय आने लगता है, निश्चय ही समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है ।
गोपाष्टमी के दिन गायों की सेवा करने वाले व्यक्ति पर भगवान श्री कृष्ण जी की विशेष कृपा होती है ।
नक्षत्र (Nakshatra) – श्रवण 11.47 AM तक तत्पश्चात धनिष्ठा
नक्षत्र के स्वामी :- श्रवण नक्षत्र के देवता विष्णु और सरस्वती जी तथा स्वामी चंद्र देव जी है ।
श्रवण नक्षत्र 22 वें नंबर का नक्षत्र है। यह एक त्रिशूल के जैसा प्रतीत होता है। श्रवण नक्षत्र का आराध्य वृक्ष आक या मंदार, और नक्षत्र का स्वभाव चर माना गया है । श्रावण नक्षत्र का लिंग पुरुष है।
श्रवण नक्षत्र के जातक पर शनि और चंद्र का प्रभाव जीवनभर बना रहता है। श्रवण नक्षत्र के जातक बुद्धिमान और अपने कार्यो में निपुण होते हैं ।
श्रवण नक्षत्र में जन्म होने से जातक सुंदर, दानवान, आज्ञाकारी, सर्वगुण संपन्न, धनवान और अपने क्षेत्र में मान सम्मान प्राप्त करता है।
लेकिन यदि शनि और चंद्र की स्थिति ठीक नहीं है तो ऐसा जातक क्रोधी, कंजूस, भय-शंकित रहने वाला, लापरवाह, आलसी होता है।
यदि शनि और चंद्र कुंडली में एक ही जगह है, तो जातक को जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ता है।
इसलिए जातक को हनुमानजी की सदैव उपासना करना है। जातक को शराब, मांस आदि व्यसनों से दूर रहना चाहिए।
श्रवण नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 2 और 8, भाग्यशाली रंग, आसमानी, हल्का नीला, भाग्यशाली दिन गुरुवार, बुधवार और सोमवार माना जाता है ।
श्रवण नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को “ॐ श्रवणाय नमः “। मन्त्र का जाप अवश्य करना चाहिए ।
धनतेरस के दिन यह खरीदने से घर से दरिद्रता का होगा नाश, लक्ष्मी जी का होगा वास, इस लिए धनतेरस पर अवश्य ही यह अनिवार्य रूप से खरीदें,
- योग (Yog) – वृद्धि 4.43 AM, 10 नवम्बर तक
- योग के स्वामी, स्वभाव :- वृद्धि योग के स्वामी सूर्य देव एवं स्वभाव शुभ माना जाता है । ।
- प्रथम करण : – विष्टि 11.24 AM तक
- करण के स्वामी, स्वभाव :- विष्टि करण के स्वामी यम और स्वभाव क्रूर है ।
- द्वितीय करण : – बव 22.45 PM तक तत्पश्चात बालव
- करण के स्वामी, स्वभाव :- बव करण के स्वामी इंद्र देव और स्वभाव सौम्य है ।
- गुलिक काल : – शनिवार को शुभ गुलिक प्रातः 6 से 7:30 बजे तक ।
- दिशाशूल (Dishashool)- शनिवार को पूर्व दिशा का दिकशूल होता है ।
यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से अदरक खाकर, घी खाकर जाएँ ।
- राहुकाल (Rahukaal)-सुबह – 9:00 से 10:30 तक।
- सूर्योदय – प्रातः 06:39 AM
- सूर्यास्त – सायं 17:30 PM
- विशेष – अष्टमी को नारियल का सेवन नहीं करना चाहिए, अष्टमी को नारियल का सेवन करने से बुध्दि का नाश होता है ।
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- पर्व त्यौहार-
- मुहूर्त (Muhurt) –
“हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।
आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।
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आप पर ईश्वर का सदैव आशीर्वाद बना रहे ।
आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।
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Parnam pandit ji