Sunday, November 2, 2025
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शनिवार का पंचांग, Shaniwar Ka Panchang, 1 नवम्बर 2025 का पंचांग,

आप सभी को देव प्रबोधिनी एकादशी / देव उठनी एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएं


Shaniwar Ka Panchang, शनिवार का पंचांग, 1 November 2025 ka Panchang,

  • Panchang, पंचाग, ( Panchang 2025, हिन्दू पंचाग, Hindu Panchang ) पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-


1:- तिथि (Tithi)
2:- वार (Day)
3:- नक्षत्र (Nakshatra)
4:- योग (Yog)
5:- करण (Karan)


पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे ।
जानिए शनिवार का पंचांग, (Shanivar Ka Panchang), आज का पंचांग, aaj ka panchang, saturday ka panchang।

  • शनिवार का पंचांग, (Shanivar Ka Panchang, )

    1 नवम्बर
    2025 का पंचांग, 1 November 2025 ka Panchang,
  • दिन (वार) -शनिवार के दिन क्षौरकर्म अर्थात बाल, दाढ़ी काटने या कटाने से आयु का नाश होता है । अत: शनिवार को बाल और दाढ़ी दोनों को ही नहीं कटवाना चाहिए।

*विक्रम संवत् – 2082,
* शक संवत – 1947,
* कलि संवत – 5127,

* कलयुग 5127 वर्ष
* अयन – दक्षिणायन,
* ऋतु – शरद
ऋतु,
* मास –
कार्तिक माह,
* पक्ष –
शुक्ल पक्ष,
*चंद्र बल –
मेष, वृषभ, सिंह, कन्या, धनु, कुम्भ,

जानिए कुबेर जी के परिवार के बारे में, जीवन में सुख-समृद्दि, ऐश्वर्य की नहीं होगी कोई कमी  

शनिवार को शनि महाराज की होरा :-

प्रात: 6.15 AM से 7.18 AM तक

दोपहर 01.01 PM से 1.55 PM तक

रात्रि 19.48 PM से 8.50 PM तक

शनिवार को शनि की होरा में अधिक से अधिक शनि देव के मंत्रो का जाप करें । श्रम, तेल, लोहा, नौकरो, जीवन में ऊंचाइयों, त्याग के लिए शनि की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।

शनिवार के दिन शनि की होरा में शनि देव देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में शनि ग्रह मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।

तुलसी विवाह का पुण्य लिखने में देवता भी असमर्थ है, जानिए कैसे होता है तुलसी जी और शालिग्राम जी का विवाह,

शनि देव के मन्त्र :-

ॐ शं शनैश्चराय नमः।

अथवा

ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌।।

  • तिथि (Tithi)- दशमी 9.11 AM तक तत्पश्चात एकादशी ।
  • तिथि का स्वामी – दशमी तिथि के स्वामी यमराज जी और एकदशी तिथि के स्वामी भगवान श्री विष्णु जी है ।

दशमी तिथि के देवता यमराज जी हैं। यह दक्षिण दिशा के स्वामी है। इनका निवास स्थान यमलोक है।  शास्त्रों के अनुसार यमराज जी मृत्यु के देवता कहे गए हैं।

गरुड़ पुराण के अनुसार यमराज के महल को कालित्री महल कहते हैं और उनके सिंहासन को विचार-भू कहते हैं।

पद्म पुराण में उल्लेख मिलता है कि यमलोक पृथ्वी से 86,000 योजन यानी करीब 12 लाख किलोमीटर दूर है।

गरुड़ पुराण में यमलोक में चार द्वार बताए गए हैं। पूर्वी द्वारा से प्रवेश सिर्फ धर्मात्मा और पुण्यात्माओं को मिलता है जबकि दक्षिण द्वार से पापियों का प्रवेश होता है जिसे यमलोक में यातनाएं भुगतनी पड़ती है।

साधु-संतों को उत्तर दरवाजे से और दान पुण्य करने वाले मनुष्यों को पश्चिम द्वार से प्रवेश मिलता है।

यमराज जी भगवान सूर्य और उनकी पत्नी संज्ञा के पुत्र है, यमुना अर्थात (यमी)  इनकी जुड़वां बहन और मनु इनके भाई कहे गए है।

यमराज की पत्नी  का नाम देवी धुमोरना तथा इनके पुत्र का नाम कतिला है।

यमराज जी का वाहन महिष / भैंसे को माना गया हैं। वे समस्त जीवों के शुभ अशुभ कर्मों का निर्णय करते हैं।

इस दिन इनकी पूजा करने, इनसे अपने पापो के लिए क्षमा माँगने से जीवन की समस्त बाधाएं दूर होती हैं, निश्चित ही सभी रोगों से छुटकारा मिलता है,  नरक के दर्शन नहीं होते है अकाल मृत्यु के योग भी समाप्त हो जाते है।

मथुरा में स्थित यमराज और उनकी बहन यमुना जी का एक प्राचीन मंदिर है  उस मंदिर को यमुना धर्मराज मंदिर कहते है। देश में भाई-बहन का ये एकमात्र मंदिर है।

मान्यता है कि, भाई बहन इस मंदिर में भैया दूज के दिन एक साथ स्नान करते हैं। इससे उन्हें मृत्यु के बाद बैकुंठ की प्राप्ति होती है।

 इस तिथि को धर्मिणी भी कहा गया है। समान्यता यह तिथि धर्म और धन प्रदान करने वाली मानी गयी है ।

दशमी तिथि में नया वाहन खरीदना शुभ माना गया है। इस तिथि को सरकार से संबंधी कार्यों का आरम्भ किया जा सकता है।  

यमराज जी का समस्त रोगों को बाधाओं को दूर करने वाले मन्त्र :- “ॐ क्रौं ह्रीँ आं वैवस्वताय धर्मराजाय भक्तानुग्रहकृते नम : “॥ की एक माला का जाप अथवा कम से कम 21 बार इस मन्त्र का जाप करें ।  

दशमी को परवल नहीं खाना चाहिए।    

देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी 4 माह की योग निद्रा से जागते है, इस दिन इस उपाय से समस्त मनोकामनाएँ होती है पूर्ण 

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आज अति शुभ देव उठनी एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी है । इस एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु चार मास बाद क्षीर सागर से अपनी योग निद्रा से जागते है और इसी दिन से समस्त शुभ कार्यो का आरम्भ हो जाता है । इस दिन भगवान श्री विष्णु जी को निद्रा से जगाने के लिए विशेष रूप से पूजा-अर्चना भी जाती है।

इस देव उठनी एकादशी के दिन से ही चातुर्मास समाप्त हो जाता है और विवाह, मुंडन, नामकरण आदि मांगलिक कार्यो का योग बनना भी शुरू हो जाता है।

यह एकादशी 1 नवम्बर को है या 2 नवम्बर को इसमें असमंजस्य की स्तिथि है । एकादशी तिथि शनिवार 1 नवम्बर को प्रात: 09.13 AM से प्रारम्भ है जो रविवार 2 नवम्बर को प्रात: 07.33 AM पर समाप्त हो रही है उसके बाद द्वादशी तिथि लग रही है लेकिन अगले दिन सोमवार को उदया तिथि में त्रियोदशी तिथि लग रही है अर्थात द्वादशी तिथि का क्षय हो रहा है ।

एकादशी ब्रत का पारण द्वादशी तिथि में किया जाता है इसलिए एकादशी का ब्रत शनिवार 1 नवम्बर को रखा जायेगा क्योंकि अगर आप उदया तिथि के अनुसार रविवार 2 नवम्बर को ब्रत रखेंगे तो आप ब्रत का पारण नहीं कर पाएंगे, इसलिए 1 नवम्बर को ही एकादशी का ब्रत रखना श्रेयकर होगा ।

शास्त्रों के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल की एकादशी देव शयनी एकादशी के दिन श्री विष्णु जी ने शंखासुर नामक दैत्य का वध किया था। यह युद्ध बहुत ही लंबा चला था। शंखासुर का वध करने के बाद भगवान विष्णु क्षीर सागर में जाकर सो गए थे। इसके बाद वह कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का उठे थे। इस अवधि को चतुर्मास भी कहते है और इस अवधि में समस्त शुभ कार्यो पर रोक लग जाती है ।

विष्णुपुराण के अनुसार इस दिन जो भी जातक भगवान विष्णु की विधि पूर्वक पूजा, उनका स्मरण करते हैं उनके समस्त दुख दूर होते हैं. उनके सभी मनोरथ निश्चय ही पूर्ण होते है ।

शास्त्रों के अनुसार जो मनुष्य इस देव उठनी एकादशी व्रत को करता है, इस व्रत की कथा को पड़ता है, वह धनवान, प्रतापी, तेजवान,अपनी इन्द्रियों को जीतने वाला होता है,तथा भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय होता है ।

इस बार देव उठनी एकादशी व्रत पर ध्रुव योग, वृद्धि योग, रवि योग समेत कई शुभ योगो का निर्माण भी हो रहा है ।

इस एकादशी के दिन से भगवान विष्णु जी फिर से सृष्टि के संचालन को संभालते हैं। वैसे तो तुलसी और शालिग्राम जी का विवाह कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को होता है लेकिन बहुत से लोग इस एकादशी के दिन भी घर में तुलसी विवाह का आयोजन करते है।

एकादशी के दिन तुलसी जी में जल अर्पित न करें। क्योंकि मान्यता है कि एकादशी के दिन तुलसी माँ , भगवान विष्णु के लिए निर्जला व्रत करती हैं। भगवान विष्णु जी को अर्पित करने के लिए एक दिन पहले ही तुलसी के पत्ते तोड़कर रखने चाहिए ।

इस एकादशी के दिन विष्णु जी और लक्ष्मी जी की पूजा करने से आरोग्य, सुख- समृद्धि, और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है । एकादशी के दिन एकादशी की कथा पढ़नी / सुननी चाहिए और विष्णु जी के मंत्रो………

ॐ नमो नारायण

अथवा

ॐ नमो भगवते वासुदेवाये

का अधिक से अधिक जाप करना चाहिए ।

इस एकादशी पर रात्रि जागरण का विशेष महत्त्व है, मान्यता है कि इस एकादशी के दिन रात्रि में भजन कीर्तन करके विष्णु जी का ध्यान – भक्ति करने से समस्त पापो का नाश होता है । शास्त्रों के अनुसार इस दिन रात में जागरण करने से कई पीढ़ियों को मरणोपरांत स्वर्ग मिलता है, पितरो को भी स्वर्ग में स्थान मिलता है।

एकादशी के दिन सेम की फली एवं चावल का सेवन भूल कर भी नहीं करना चाहिए ।

 तुलसी जी को “विष्णु प्रिया” कहा गया है, तुलसी विवाह के महत्त्व जानने से समस्त पापो का नाश होता है,

नक्षत्र (Nakshatra) – शतभिषा 18.20 PM तक तत्पश्चात पूर्व भाद्रपद,

नक्षत्र के स्वामी :-            शतभिषा नक्षत्र के देवता वरुण देव जी और शतभिषा के स्वामी राहु जी है ।  

शतभिषा नक्षत्र का स्थान आकाश मंडल के नक्षत्रो में 24 वां है।। ‘शतभिषा’ का अर्थ है ‘सौ चिकित्सक’ अथवा ‘सौ चिकित्सा’। यह एक चक्र, एक बैल गाड़ी जो चिकित्सा का प्रतीक है जैसा प्रतीत होता है। ऐसे जातक पर राहु और शनि का प्रभाव रहता है।

 शताभिषा नक्षत्र सितारे का लिंग तटस्थ है। शताभिषा नक्षत्र का आराध्य वृक्ष: कदंब, तथा स्वाभाव चर होता है ।

यदि कुंडली में राहु और शनि का प्रभाव अच्छा है तो जातक दार्शनिक, वैज्ञानिक, अच्छे आचरण वाला, आत्मविश्वास से भरा हुआ, महत्वाकांक्षी, साहसी, सदाचारी, दाता, धार्मिक लेकिन कठोर स्वाभाव वाला होता है।

लेकिन राहु के खराब होने पर जातक तंत्र मन्त्र पर बहुत विश्वास रखने वाला, वहमी, शक्की, पराई स्त्री पर आसक्त रहने वाला, कलह प्रिय, घर से दूर रहने की चाह रखने वाला, घर वालो को दुःख देने वाला होता है । 


अत: शतभिषा नक्षत्र के जातको को राहु को अपने अनुकूल करने का उपाय अवश्य जी करना चाहिए ।

शतभिषा नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 4 और 8, भाग्यशाली रंग हरा और नीला, भाग्यशाली दिन शुक्रवार, शनिवार और सोमवार होता है ।

शतभिषा नक्षत्र में जन्मे जातको को नित्य तथा अन्य सभी को आज  नक्षत्र देवता नाममंत्र:- “ॐ वरुणाय नमः “ या नक्षत्र नाम मंत्र :- “ॐ शतभिषजे नमः” मन्त्र की एक माला का जाप अवश्य करना चाहिए।

शतभिषा नक्षत्र के जातको को  भगवान शंकर जी की उपासना करने से आशातीत सफलता मिलती है ।

अगर 50 की जगह 25, 60 की जगह 30 की उम्र चाहते है, जीवन में डाक्टर के पास ना जाना हो तो अवश्य करे ये उपाय   

  • योग (Yog) – ध्रुव 02.10 AM तक रविवार 2 नवम्बर तक,
  • योग के स्वामी, स्वभाव :-    ध्रुव योग की स्वामी भूमि एवं स्वभाव श्रेष्ठ माना जाता है ।
  • प्रथम करण : – गर 09.11 AM तक,
  • करण के स्वामी, स्वभाव :-     गर करण के स्वामी भूमि तथा स्वभाव सौम्य है ।
  • द्वितीय करण : – वणिज 20.27 PM तक तत्पश्चात विष्टि
  • करण के स्वामी, स्वभाव :-    वणिज करण की स्वामी लक्ष्मी देवी और स्वभाव सौम्य है ।
  • ब्रह्म मुहूर्त : 4.50 AM से 5.41 AM तक
  • विजय मुहूर्त : 13.55 PM से 14.39 PM तक
  • गोधूलि मुहूर्त : 17.36 PM से 18.02 PM तक
  • अमृत काल : अमृत काल 11.17 AM से 12.51 PM तक
  • गुलिक काल : – शनिवार को शुभ गुलिक प्रातः 6 से 7:30 बजे तक ।
  • दिशाशूल (Dishashool)- शनिवार को पूर्व दिशा का दिकशूल होता है ।

    यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से अदरक खाकर, घी खाकर जाएँ ।
  • राहुकाल (Rahukaal)-सुबह – 9:00 से 10:30 तक।
  • सूर्योदय – प्रातः 06:33 AM
  • सूर्यास्त – सायं 17:36 PM
  • विशेष – दशमी के दिन कलम्बी, परवल का सेवन नहीं करना चाहिए ।
  • एकादशी के दिन सेम फली, चावल का सेवन और दूसरो के अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए ।
  •  एकादशी के दिन चावल खाने से रोग बढ़ते है और दूसरे का अन्न खाने से पुण्य नष्ट होते है ।


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  • पर्व त्यौहार- देव प्रबोधिनी एकादशी / देव उठनी एकादशी
  • मुहूर्त (Muhurt) –

“हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।

आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

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आप पर ईश्वर का सदैव आशीर्वाद बना रहे ।
आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

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ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय
( हस्त रेखा, कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ )

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