chandra darshan ka dosh, चंद्र दर्शन का दोष,
भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से 10 दिनों के गणेश उत्सव प्रारम्भ हो जाते है, इन दिनों गणेश जी की आराधना परम फलदाई है, सभी तरह के संकट दूर होते है । लेकिन इस दिन chandra darshan ka dosh, चंद्र दर्शन का दोष, लगता है ।
भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी जिसे गणेश चौथ भी कहते है इस दिन चंद्र देव का दर्शन करना बिलकुल मना है।
शास्त्रों के अनुसार इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से व्यक्ति के उपर भविष्य में कलंक या चोरी का इल्जाम लग सकता है। शास्त्रों में इसके पीछे एक कथा बताई गयी है।
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उस कथा के अनुसार एक दिन भगवान गणपति जी अपने वाहन चूहे की सवारी करते हुए गिर पड़े तो चंद्र देव ने उन्हें देख लिया और वह गणेश जी पर हंसने लगे।
चंद्र देव को अपना उपहास उड़ाते देख गणेश जी क्रोधित हो गए और उन्होंने चंद्र देव को श्राप दिया कि जाओ तुम्हें अब से कोई भी देखना पसंद नहीं करेगा, और यदि जो तुम्हे देखेगा तो वह कलंकित हो जाएगा।
तब चन्द्रमा जी को अपनी गलती का अहसास हुआ और वह गणेश जी के श्राप से चंद्र बहुुत दुखी हो गए। चन्द्रमा जी को इस श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए तब चंद्र देव के साथ समस्त देवताओं ने भी गणपति जी पूजा अर्चना की इससे गणपति जी प्रसन्न हो गए और उन्होंने देवताओं से वरदान मांगने को कहा।
तब सभी देवताओं ने विनती की कि हे गणेश जी आप चंद्र देव को अपने श्राप से मुक्त कर दीजिये ।
देवताओं की विनती सुनकर गणपति ने कहा कि मैं अपना श्राप तो वापस नहीं ले सकता लेकिन इसमें कुछ बदलाव करके इसका दोष कम जरूर कर सकता हूं।
भगवान गणेश ने चन्द्रमा से कहा कि मेरा यह श्राप अब से आपके ऊपर वर्ष में सिर्फ एक ही दिन मान्य रहेगा। जो कोई भी भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को आपको देखेगा उसके ऊपर मिथ्या कलंक लगेगा ।
इसलिए भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को बहुत सावधान रहना चाहिए, इस दिन चन्द्रमा जी के दर्शन बिलकुल भी नहीं करने चाहिए ।
मान्यता है कि यदि चतुर्थी के दिन जाने अनजाने में चंद्रमा के दर्शन हो जाएं तो उसके दोष से बचने के लिए एक छोटा सा कंकर या पत्थर का टुकड़ा लेकर किसी की छत पर फेंक देना चाहिए ।
इसीलिए बहुत से लोग गणेश चतुर्थी को पत्थर चौथ भी कहते है।
इस सम्बन्ध में शास्त्रों में एक और कथा भी मिलती है ………
इस कथा के अनुसार जब भाद्रपद की चतुर्थी के दिन भगवान गणेश जी के मस्तक पर हाथी का सिर लगाया गया तो उसके बाद गणेश जी पृथ्वी की परिक्रमा करके देवताओं में प्रथम पूज्य कहलाए ।
तब सभी देवी-देवताओं ने गणेश जी की वंदना की लेकिन चंद्र देव ने अभिमान वश ऐसा नहीं किया।
चंद्रमा को अपने रूप-रंग पर घमंड था और गजमस्तक के कारण उनकी आँखों में गणेश जी के लिए उपहास था। इससे गणेश जी क्रोधित हो गए और उन्होंने चद्र्मा जी को श्राप दिया कि हे चंद्र देव तुम्हे अपने रूप पर बहुत अभिमान है जानो आज से तुम काले हो जाओगे।
इस पर चंद्र देव को अपनी गलती का अहसास हुआ और वह इस श्राप से बहुत भयभीत हो गए उन्होंने बार बार गणेश जी की वंदना करते हुए उनसे माफी मांगी।
तब गणेश जी ने उन पर दया करके कहा कि मेरा यह श्राप आप पर केवल एक ही दिन भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मान्य होगा, जैसे-जैसे सूर्य की किरणें फिर से चंद्रमा पर पड़ेंगी उनकी आभा वापस आ जाएगी।
उसी समय से गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन करना वर्जित हो गया, मान्यता है कि यदि कोई ऐसा करता है तो उस पर भविष्य में कोई बड़ा मिथ्या आरोप लगता है।