Thursday, April 24, 2025
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रविवार का पंचांग, Raviwar Ka Panchag, 27 अप्रैल का पंचांग 2025 का पंचांग,

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रविवार का पंचांग, Raviwar Ka Panchag,

20 अप्रैल 2025 का पंचांग, 20 April 2025 ka Panchang,

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Panchang, पंचाग, आज का पंचांग, aaj ka panchang, Panchang 2025, हिन्दू पंचाग, Hindu Panchang पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-


1:- तिथि (Tithi)
2:- वार (Day)
3:- नक्षत्र (Nakshatra)
4:- योग (Yog)
5:- करण (Karan)



पंचाग (panchang) का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम भी पंचाग (panchang) का श्रवण करते थे । जानिए रविवार का पंचांग, Ravivar Ka Panchang।

रविवार का पंचांग, Ravivar Ka Panchang,
20 अप्रैल 2024 का पंचांग
, 20 April 2024 ka Panchang,

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भगवान सूर्य जी का मंत्र : ऊँ घृणि सूर्याय नम: ।।
।। आज का दिन अत्यंत मंगलमय हो ।।

👉🏽दिन (वार) रविवार को की गई सूर्य पूजा से व्यक्ति को घर-परिवार और समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। रविवार के दिन उगते हुए सूर्य को देव को एक ताबें के लोटे में जल, चावल, लाल फूल और रोली डालकर अर्ध्य करें।

इस दिन आदित्य ह्रदय स्रोत्र का पाठ करें एवं यथा संभव मीठा भोजन करें। सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है, सूर्य देव को जल देने से पितृ कृपा भी मिलती है।

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रविवार के दिन भैरव जी के दर्शन, आराधना से समस्त भय और संकट दूर होते है, साहस एवं बल की प्राप्ति होती है । अत: रविवार के दिन मंदिर में भैरव जी के दर्शन अवश्य करें ।

रविवार के दिन भैरव जी के मन्त्र ” ॐ काल भैरवाय नमः “ या ” ॐ श्री भैरवाय नमः “ की एक माला जाप करने से समस्त संकट, भय दूर होते है, रोगो, अकाल मृत्यु से बचाव होता है, मनवांछित लाभ मिलता है।

1593 Revisions

* विक्रम संवत् – 2081, वर्ष
* शक संवत – 1945, वर्ष
* कलि संवत 5124, वर्ष
* कलयुग – 5126, वर्ष
* अयन – उत्तरायण,
* ऋतु – बसंत ऋतु,
* मास – बैसाख माह
* पक्ष – कृष्ण पक्ष
* चंद्र बल – मिथुन, कर्क, तुला, धनु, कुम्भ, मीन,

रविवार को सूर्य देव की होरा :-

प्रात: 5.51 AM से 6.56 AM तक

दोपहर 01.25 PM से 02.30 PM तक

रात्रि 20.39 PM से 9.34 PM तक

रविवार को सूर्य की होरा में अधिक से अधिक अनामिका उंगली / रिंग फिंगर पर थोड़ा सा घी लगाकर मसाज करते हुए सूर्य देव के मंत्रो का जाप करें ।

सुख समृद्धि, मान सम्मान, सरकारी कार्यो, नौकरी, साहसिक कार्यो, राजनीती, कोर्ट – कचहरी आदि कार्यो में सफलता के लिए रविवार की होरा अति उत्तम मानी जाती है ।

रविवार के दिन सूर्य देव की होरा में सूर्य देव के मंत्रो का जाप करने से कुंडली में सूर्य ग्रह मजबूत होते है, पूरे दिन शुभ फलो की प्राप्ति होती है ।


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सूर्य देव के मन्त्र :-

ॐ भास्कराय नमः।।

अथवा

ऊँ घृणि सूर्याय नम: ।।

  • तिथि (Tithi) – सप्तमी 19.00 PM तक तत्पश्चात अष्टमी,
  • तिथि के स्वामी :- सप्तमी तिथि के स्वामी भगवान सूर्य देव जी और अष्टमी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ जी है ।

आज अति शुभ “रविवारी सप्तमी” है । सप्तमी तिथि के स्वामी भगवान सूर्य देव जी है ।  रविवारी सप्तमी के दिन किया गया जप, तप, दान अनंत गुना फलदायी होता है ।

 होली, दीवाली ,जन्माष्टमी, और शिवरात्रि के दिन में जप, तप, दान करने का जितना फल मिलता है है उतना ही फल रविवारी सप्तमी के दिन भी मिलता है ।

रविवारीय सप्तमी के दिन अधिक से अधिक पूजा – पाठ, जप का अक्षय पुण्य मिलता है, आने वाली पीढ़ियां भी सुख भोगती है  ।  

सप्तमी के दिन भगवान सूर्य देव के मन्त्र “ॐ सूर्याय नम:”।। की एक माला का जाप अवश्य ही करें ।

रविवारीय सप्तमी के दिन क्रोध बिलकुल भी ना करें, इस दिन सूर्य भगवान का पूजन अवश्य ही करे और मीठा भोजन करें अथवा दोपहर तक नमक ना खाएं ।

इस दिन भगवान सूर्य देव को आक का फूल या  पुष्प और गुड़ अर्पित करे ।

रविवारी सप्तमी के दिन गुड़ का दान करने से सफलता और परिवारिक सुखो की प्राप्ति होती है ।

  सप्तमी तिथि में जन्मा जातक भाग्यशाली, गुणवान, तेजयुक्त होता है उसकी काबिलियत से उसे सभी क्षेत्रो में सम्मान प्राप्त होता  है।

सप्तमी का विशेष नाम ‘मित्रपदा’ है।  सप्तमी को काले, नीले वस्त्रो को धारण नहीं करना चाहिए।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि की पूजा का भी दिन माना जाता है, जो समस्त संकटों का नाश करने वाली हैं। अत: इस दिन माँ काली की आराधना, स्मरण अवश्य करें ।

सप्तमी के दिन माँ काली जी के मन्त्र “ॐ क्रीं काल्यै नमः” का जाप करने से समस्त भय और संकट दूर होते है।  

 सप्तमी तिथि के दिन उत्साह से भरे,  शुभ मंगल कार्य करना शुभ माना जाता है।  किसी नए स्थान की यात्रा करना, नए कार्यो को करने के लिए भी यह तिथि शुभ मानी जाती है।  

नए वस्त्र एवं गहनों को धारण करना, विवाह, नृत्य- संगीत जैसे काम करना भी इस दिन उत्तम होता है। चूड़ा कर्म, अन्नप्राशन, उपनयन जैसे शुभ संस्कार इस तिथि समय पर किए जाते हैं ।

सप्तमी की दिशा वायव्य मानी गयी है ।

सप्तमी तिथि को ताड़ के फल का सेवन नहीं करना चाहिए । माना जाता है कि सप्तमी को ताड़ का सेवन करने से रोग बढ़ते है ।

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आज मासिक कालाष्टमी है । हर माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भैरव अष्टमी, Bhairav Ashtmi, कालाष्टमी के दिन कालभैरव के भक्त उनकी पूजा और उनके लिए उपवास करते हैं ।

इस दिन भैरव नाथ की सच्चे मन से पूजा, अर्चना और व्रत करने से भैरव नाथ अति प्रसन्न होकर भक्तो पर अपनी कृपा बरसाते है,सभी शत्रुओं, विपदाओं का नाश होता है और पाप एवं कष्ट दूर होते हैं।

इस दिन श्री कालभैरव जी का दर्शन-पूजन अत्यंत मनवाँछित फलो को प्रदान करने वाला होता है।

मान्यता है कि इस दिन भैरव जी की पूजा व व्रत करने से समस्त विघ्न, भूत, पिशाच एवं काल का भय भी भी दूर होता है।

  मासिक कालाष्टमी के दिन भैरव जी का मन्त्र “ॐ श्री काल भैरवाये नम:” का अधिक से अधिक जाप अवश्य करें  

भगवान शिव के इस रुप भैरव जी की पूजा उपासना करने वाला मनुष्य इनका आश्रय प्राप्त करके निर्भय हो जाता है तथा किसी भी तरह के कष्ट उसके निकट भी नहीं आते है।

भैरव नाथ की उपासना क्रूर ग्रहों के सभी बुरे प्रभाव को समाप्त करती है, शनि देव का प्रकोप भी शांत होता है।

भैरव नाथ को काले उड़द, काले गुलाब जामुन, उड़द के बड़े, नमकीन, मदिरा, काले तिल, लाल अनार आदि विशेष रूप से प्रिय है।

 भैरव नाथ जी की मुख्य सवारी स्वान (कुत्ता ) है। भैरव अष्टमी के दिन एक रोटी लेकर उस पर अपनी तर्जनी और मध्यमा अंगुली तेल में डुबोकर लाइन खींचें। यह रोटी दो रंग वाले कुत्ते को खाने के लिए दें।

आज के दिन  “ॐ कालभैरवाय नम:।” की कम से कम एक माला का जाप अवश्य ही करें ।

नक्षत्र :- पूर्वाषाढ़ा 11.41 AM तक तत्पश्चात उत्तराषाढ़ा

नक्षत्र के स्वामी :-  पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के देवता (अष्ट वसुओं में से एक जल के देवता) और स्वामी शुक्र देव है ।  

पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र 20वें नंबर का नक्षत्र  है। ‘पूर्वाषाढ़ा’ का अर्थ है ‘विजय से पूर्व’। पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के देवता (अष्ट वसुओं में से एक जल के देवता) और स्वामी शुक्र देव है ।

शुक्र का प्रभाव पड़ने से जातक आकर्षक, प्रेम करने वाला, तथा जिंदादिल इंसान होता है। 

यह हाथी दांत या हाथ का पंखा जैसा नज़र आता है जो कि शक्ति और विजय को दर्शाता है।

पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र का लिंग पुरुष है।  पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र का आराध्य वृक्ष वेत और नक्षत्र का स्वभाव उग्र माना गया है ।

पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक निडर, आक्रामक, भगवान से डरने वाले, विनम्र, ईमानदार, पाखंड से कोसों दूर,संकल्प शक्ति वान होते हैं।

लेकिन यदि कुंडली में गुरु और शुक्र अशुभ हो तो ऐसे जातक बेहद जिद्दी, अस्थिर, झगड़ालू, निर्णय नहीं लेने वाले होते है इन्हे आर्थिक कठनाई लगी रहती है ।

पूर्वाषाढ़ा  नक्षत्र के लिए भाग्यशाली संख्या 3 और 6, भाग्यशाली रंग, काला, गहरा भूरा,  भाग्यशाली दिन रविवार, शनिवार, शुक्रवार और गुरुवारका माना जाता है ।

पूर्वाषाढ़ा  नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को “ॐ पूर्वाषाढाभ्यां नमः”। मन्त्र का जाप अवश्य करना चाहिए ।

 जीवन में निरंतर शुभ समय के लिए पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के जातको को माँ लक्ष्मी, माँ ललिता और देवी त्रिपुर सुंदरी की पूजा उपासना करनी चाहिए. ।

लक्ष्मी सहस्त्रनाम, ललिता सहस्त्रनाम, कनकधारा स्त्रोत, महालक्ष्मी अष्टक का पाठ करना जातक के लिए कल्याणकारी होता है. ।

 इसके अतिरिक्त पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के जातको को नित्य भगवान शंकर जी की आराधना भी बहुत शुभ फलदाई होती है ।


घर के बैडरूम में अगर है यह दोष तो दाम्पत्य जीवन में आएगी परेशानियाँ, जानिए बैडरूम के वास्तु टिप्स

  • योग (Yog) – सिद्ध 12.13 AM सोमवार 21 अप्रैल तक
  • योग के स्वामी :-   सिद्ध योग के स्वामी भगवान कार्तिकेय जी और स्वभाव श्रेष्ठ माना जाता है ।
  • प्रथम करण : – विष्टि 6.46 AM तक
  • करण के स्वामी, स्वभाव :- विष्टि करण के स्वामी यम और स्वभाव क्रूर है ।
  • द्वितीय करण : – बव 19.02 PM तत्पश्चात बालव,
  • करण के स्वामी, स्वभाव :-    बव करण के स्वामी इंद्र देव और स्वभाव सौम्य है ।
  • ब्रह्म मुहूर्त : 4.22 AM से 5.06 AM तक
  • विजय मुहूर्त : 14.30 PM से 15.22 PM तक
  • गोधूलि मुहूर्त : 18.49 PM से 19.11 PM तक
  • त्रिपुष्कर योग :- त्रिपुष्कर योग :- 11.48 AM से 19.02 PM तक
  • दिशाशूल (Dishashool)- रविवार को पश्चिम दिशा का दिकशूल होता है । यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से पान या घी खाकर जाएँ ।
  • गुलिक काल : – अपराह्न – 3:00 से 4:30 तक ।
  • राहुकाल (Rahukaal)-सायं – 4:30 से 6:00 तक ।
  • सूर्योदय – प्रातः 05:51
  • सूर्यास्त – सायं 18:50

    आँखों की रौशनी बढ़ाने, आँखों से चश्मा उतारने के लिए अवश्य करें ये उपाय

  • विशेष – रविवार को बिल्ब के वृक्ष / पौधे की पूजा अवश्य करनी चाहिए इससे समस्त पापो का नाश होता है, पुण्य बढ़ते है।

    रविवार के दिन भगवान सूर्य देव को आक का फूल अर्पण करना किसी भी यज्ञ के फल से कम नहीं है, इससे सूर्य देव की सदैव कृपा बनी रहती है ।

    रविवार को अदरक और मसूर की दाल का सेवन बिलकुल भी नहीं करना चाहिए ।


    सप्तमी को ताड़ का सेवन नहीं करना चाहिए  । इस दिन ताड़ का सेवन करने से रोग लगते है । 
  • पर्व त्यौहार- रविवारीय सप्तमी
  • मुहूर्त (Muhurt) –

“हे आज की तिथि (तिथि के स्वामी), आज के वार, आज के नक्षत्र ( नक्षत्र के देवता और नक्षत्र के ग्रह स्वामी ), आज के योग और आज के करण, आप इस पंचांग को सुनने और पढ़ने वाले जातक पर अपनी कृपा बनाए रखे, इनको जीवन के समस्त क्षेत्रो में सदैव हीं श्रेष्ठ सफलता प्राप्त हो “।

आप का आज का दिन अत्यंत शुभ फलो वाला हो ।

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आप पर ईश्वर का सदैव आशीर्वाद बना रहे ।
आप का आज का दिन अत्यंत मंगल दायक हो ।

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ज्योतिषाचार्य मुक्ति नारायण पाण्डेय
( हस्त रेखा, कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ )

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