
holika dahan ka muhurat, होलिका दहन का मुहूर्त,
होली, holi, हमारे भारत का एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है जो फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। हर्ष, उल्लास और रंगों का यह त्योहार मुख्यतया: दो दिन मनाया जाता है, होलिका दहन, holika dahan और रंगो का पर्व धुलेंडी।
पहले दिन होलिका दहन, holika dahan होता है इस दिन होलिका जलायी जाती है और दूसरे दिन लोग एक दूसरे को रंग, अबीर-गुलाल लगाते हैं, इसे धुलेंडी कहा जाता है, इस दिन हुलियारों की टोलियाँ ढोल बजा बजा घूम,घूम कर होली खेलती है । इस दिन लोग एक दूसरे के घर जा कर रंग लगाते है और गले मिलते है। होली के दिन लोग पुरानी से पुरानी कटुता को भूला कर गले मिलकर फिर से दोस्त बन जाते हैं।
होली हमारे देश में बहुत ही प्राचीन समय से मनाई जाती है। अनेको प्राचीन धर्म ग्रंथों, मध्ययुगीन पुस्तकों और मुगलकालीन इतिहास में भी होली खेले जाने का उल्लेख्य है।
holika dahan ka muhurat, होलिका दहन का मुहूर्त,
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सभी त्योहारों को मुहूर्त के अनुसार मनाना ही उत्तम रहता है । होलिका दहन का मुहूर्त, holika dahan ka muhurat, का अवश्य ही ध्यान रखें ।
नारद पुराण के अनुसार होलिका दहन, holika dahan फाल्गुन पूर्णिमा की रात्रि को भद्रारहित प्रदोष काल में करना चाहिए, होलिका का दहन विधिवत रुप से होलिका का पूजन करने के बाद ही करना श्रेष्ठ है।
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मान्यता है कि भद्रा के समय में होलिका दहन, holika dahan करने से उस क्षेत्र में अशुभ घटनाएं हो सकती है इसके अलावा चतुर्दशी तिथि, प्रतिपदा एवं सूर्यास्त से पहले कभी भी होलिका दहन नहीं करना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार अगर होलिका दहन के समय में भद्रा आ रही हो तो होलिका दहन का मुहूर्त हमेशा भद्रा मुख का त्याग करके निर्धारित होता है क्योंकि भद्रा मुख में होलिका दहन बिलकुल वर्जित है। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भद्रा मुख में किया होली दहन अनिष्ट को बुलावा देना जैसा है जिसका दुषपरिणाम दहन करने वाले और उस शहर उस देशवासियों को भी भुगतना पड़ सकता है।

इसके अतिरिक्त यदि भद्रा पूँछ प्रदोष से पहले और मध्य रात्रि के बाद भी हो तो उसे भी होलिका दहन के लिये नहीं लिया जा सकता क्योंकि होलिका दहन का मुहूर्त सूर्यास्त और मध्य रात्रि के बीच ही उचित माना जाता है।
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लेकिन इस बार वर्ष 2023 में 6 मार्च को ही 16:18 बजे से भद्राकाल शुरू हो जाएगा जो अगले दिन सुबह 5:15 बजे तक रहेगा।
होलिका दहन पूर्णिमा में ही शुभ माना जाता है और प्रतिपदा, सूर्योदय, चतुदर्शी व भद्रा में होलिका दहन नहीं किया जा सकता है।
मूहर्त चिंतामणि ग्रंथ के अनुसार भद्रा काल में रक्षा बंधन और होलिका दहन दोनों को ही वर्जित बताया गया है । इस बार होली पर चतुर्दशी तिथि को सिंह राशि में चन्द्रमा होने के कारण भद्रा 6 मार्च सोमवार को सांय 4:18 मिनट से शुरू हो जाएगी और उसका वास पृथ्वीलोक में होगा। इस कारण 6 मार्च को होली नहीं जलायी जाएगी ।
इसीलिए होलिका दहन 7 मार्च मंगलवार को करना श्रेयकर रहेगा।
निर्णय सिंधु ग्रंथ के अनुसार भद्रा काल में होली जलाने से देश पर संकट आ सकता है और देशवासियों को बड़े भयानक कष्ट का सामना करना पड़ सकता है । इसलिए होली का दहन भद्रा काल में कदापि नहीं करना चाहिए ।
पूर्णिमा का आरंभ :- 6 मार्च 16 बजकर 20 PM से,
पूर्णिमा का समापन :- 7 मार्च रात्रि 18 बजकर 13 मिनट तक
स्मृतिसार शास्त्र के अनुसार जिस वर्ष फाल्गुन की पूर्णिमा तिथि दो दिन के प्रदोष को स्पर्श करे, तब होली दूसरी पूर्णिमा अर्थात अगले दिन जलानी चाहिए । इस वर्ष पूर्णिमा तिथि 6 मार्च को 4.20 PM से शुरू होने के बाद 7 मार्च को शाम 06:13 मिनट पर समाप्त होगी ।
चूँकि पूर्णिमा तिथि 6 और 7 मार्च दोनों दिनों के प्रदोष काल को स्पर्श करेगी, इसलिए होलिका दहन 7 मार्च को ही करना शास्त्र सम्मत होगा ।
होलिका दहन का मुहूर्त :- 7 मार्च सांय 17.48 से रात्रि 20 बजकर 51 मिनट तक
होलिका दहन करने के लिए, होलिका की पूजा करने के लिए 3 घंटे 3 मिनट तक का समय शुभ रहेगा ।
इस वर्ष होली का पर्व बहुत ही शुभ संयोग में आया है । होली के अवसर पर शनि देव 30 साल बाद अपनी स्वराशि कुंभ और देव गुरु बृहस्पति 12 साल बाद अपनी स्वराशि मीन में विराजमान रहने वाले हैं ।
इसके अतिरिक्त कुंभ राशि में त्रिग्रही योग बन रहा है । शनि, सूर्य और बुध कुंभ राशि में त्रिग्रही योग का निर्माण कर रहे हैं, होली के पर्व पर ग्रहों की ऐसी शुभ स्थिति पूरे 30 वर्ष बाद बनी है ।
नारद पुराण में होलिका दहन की कथा मिलती है इसके अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा के दिन अत्याचारी राजा हरिण्यकश्यप के कहने पर उसकी बहन होलिका हरिण्यकश्यप के पुत्र विष्णु भक्त प्रह्लाद को आग में भस्म करने के लिए उसे अपनी गोद में बैठाकर अग्नि में बैठ गई।
शास्त्रों के अनुसार होलिका को यह वरदान था कि उसे अग्नि जला नहीं सकती है। लेकिन भगवान श्री विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा करते हुए उसे आग में जलने से बचा लिया। वहीं होलिका वरदान के बाद भी अग्नि में भस्म हो गई।
इसीलिए बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक के रूप में फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका का दहन किया जाता है।
होलिका दहन का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। इसके अगले दिन हर्ष उल्लास के साथ रंगों से खेलने की परंपरा है इसे धुलेंडी, के नाम से भी जाना जाता है।

होली का रंग हमेशा पड़ेवा अर्थात प्रतिपदा ( पूर्णिमा के अगले दिन ) खेलना ही शुभ माना जाता है इसलिए होली का रंग 8 मार्च को सूर्योदय के बाद ही खेला जायेगा । रंग खेलने के लिए 8 मार्च को सूर्योदय 6 बजकर 10 मिनट से दोपहर तक का समय अच्छा रहेगा।
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