Saturday, December 21, 2024
Homeजन्माष्टमीश्री कृष्ण की लीलाएं, shri krishan ki lilayen, श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2024,

श्री कृष्ण की लीलाएं, shri krishan ki lilayen, श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2024,

श्री कृष्ण की लीलाएं, shri krishan ki lilayen,

भगवान विष्णु ने समय समय पर पृथ्वी को पापियों के बोझ से मुक्त कराने के लिए अलग अलग रूप में अवतार लिया।इसमें भगवान राम और श्री कृष्‍ण यह दोनों अवतार जनमानस के ज्यादा निकट हैं लेकिन जहाँ भगवान राम ने सदैव सामान्य मनुष्‍य की भाँति ही कार्य किये, पत्नी की विरह में व्याकुल हुए, आंसू बहाए, भूमि पर सोए, युद्द से पहले दूत भेजकर शत्रु की ताकत का भान लिया।

वहीँ दूसरी ओर श्री कृष्‍ण जी की समय-समय पर अद्भुत लीला देखकर लोगों को यह विश्वास हो गया कि वह साक्षात् प्रभु के अवतार हैं। यहाँ पर हम भगवान श्री कृष्‍ण की वह कई ऐसी प्रमुख लीलाएं बता रहे है जिनसे लोगों ने माना की यह साधारण मनुष्य नहीं वरन भगवान है ।

श्री कृष्ण की लीलाएं, shri krishan ki lilayen,

जब श्री कृष्‍ण ने कंस के कारावास में देवकी जी के गर्भ से जन्म लिया तो उनका जन्‍म होते ही प्रहरी गहरी नींद में सो गए और कारावास के दरवाजे खुल गए । साथ ही श्री कृष्ण जी को नन्दगांव में नंदराय जी के घर पहुँचाने और नंदराय की नवजात कन्या को लेकर आने कीआकाशवाणी भी हुई यह पहला संकेत था कि यह बच्चा कोई साधारण प्राणी नहीं है।

जब कंस को कृष्‍ण जी के जन्म की सूचना मिली तो उसने कृष्‍ण को मारने के लिए पूतना नाम की राक्षसी को भेजा। पूतना
कृष्‍ण जी को चुराकर अपने वक्ष पर जहर लगाकर उन्हें अपना दूध पिलाने लगी तब श्री कृष्‍ण ने पूतना के वक्ष स्‍थल से उसके ही प्राण खींच कर उस विशालकाय राक्षसी को मौत के घाट उतार दिया।

अवश्य पढ़ें :- मधुमेह से है परेशानी तुरंत करें ये उपाय, मधुमेह से मिलेगा छुटकारा,

पूतना ने नंदगांव के सभी नवजात बच्चों को मार डाला था , नन्हें कृष्‍ण द्वारा पूतना को ही यमपुरी पहुँचाने पर कृष्‍ण की इस लीला को देख कर सभी क्षेत्र वाले हैरान रह गए और लोगों ने यह कहना शुरु कर दिया की यह साधारण नवजात नहीं वरन अवश्य ही कोई दैवीय शक्ति है।

बालक कृष्ण को मारने के लिए कंस ने कालिया नाग को यमुना में भेज दिया। कालिया नाग के जहर से यमुना का जल पूरा काला पड़ गया।

इस जहरीले जल को पीने से क्या मनुष्य क्या पशु पक्षी सही लोग मरने लगे। यह देखकर नंदगांव के लोग अपने गांव को छोड़कर कहीं और बसने की सोचने लगे , लेकिन तभी एक दिन श्री कृष्‍ण खेल खेल में यमुना नदी में कूद पड़े , सभी ग्वाल – बाले यह देखकर सन्न रह गए और उन्होंने समझा कि बालक कृष्ण का अब जीवित बचाना असंभव है।

यमुना में कालिया से युद्ध करके श्री कृष्ण कालिया का वध कृष्‍ण करने ही वाले थे कि कालिया की पत्नी और नाग कन्याएं उनके प्राण की रक्षा की प्रार्थना करने लगी। तब श्री कृष्‍ण ने कालिया को माफ़ करके उसे नंद गांव से दूर जाने की आज्ञा दी। फिर कृष्‍ण ने कालिया के फन पर खड़े होकर नृत्य करना शुरू कर दिया।

जब नंद गांव के लोगों ने इस दृश्य को देखा तो हैरान रह गए और उन्हें यह विश्वास हो गया कि बालक श्री कृष्ण कोई साधारण बालक नहीं देवता है।

एक बार इंद्र द्वारा मूसलाधार बरसात किये जाने पर श्री कृष्ण ने नंदगांव के लोगो और पशुओं की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया और कई दिनों तक वह ऐसे ही खड़े रहे तब इंद्र को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने श्री कृष्ण से माफ़ी माँग ली।

फिर श्री कृष्‍ण के कहने पर गाँव वालो ने गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर दी और तभी से प्रत्येक वर्ष गोवर्धन पर्वत की पूजा होती चली आ रही है। लोगों का श्री कृष्‍ण की यह लीला देखकर पूर्ण विश्वास हो गया कि श्री कृष्ण प्रभु का अवतार है।

श्री कृष्ण ने कंस की सभा में कंस के अजेय पहलवानों को पराजित किया फिर वहीँ पर पापी कंस का भी वध कर दिया, चूँकि कंस बहुत ही बलशाली और अत्याचारी राजा था और श्री कृष्ण एक बालक और कंस का वध करना किसी साधारण व्यक्ति के वश में नहीं था, इसलिए कंस का वध करते ही पूरे नगर को यह विश्वास हो गया कि बालक श्री कृष्ण साधारण मनुष्य नहीं वरन कोई देवता है।

अवश्य पढ़ें :- जानिए वास्तु शास्त्र के अनुसार कैसा रहना चाहिए आपका बाथरूम, अवश्य जानिए बाथरूम के वास्तु टिप्स

कहते है कि भगवान श्री कृष्ण अपनी देह को अपने जरुरत के हिसाब से ढ़ाल लेते थे। कभी उनका शरीर अत्यंत कठोर हो जाता था और कभी स्त्रियों जैसा सुकोमल ।
युद्ध के समय उनका शरीर वज्र की तरह कठोर हो जाता था और गोपिओं के साथ रास में / गाँव वालो के साथ बहुत ही सुकोमल।
ऐसा इसलिए हो जाता था क्योंकि वे योग और कलारिपट्टू विद्या में पारंगत थे। लेकिन लोग यह भी मानते थे कि ऐसा करना किसी मनुष्य के बस की बात नहीं है ऐसा कोई देवता ही कर सकता है।

श्री कृष्‍ण ने अपने गुरू संदीपनी की देखरेख में अपनी शिक्षा पूरी की और कई विधाओं में पारंगत भी हो गए।
गुरू संदीपनी के पुत्र की वर्षो पहले सागर में डूबने के कारण मृत्यु हो गयी थी। गुरू दक्षिणा के समय श्री कृष्‍ण ने उनके मन की बात जान ली और उनके पुत्र को जीवित करके वापस उन्हें लौटा दिया।

अपने पुत्र को जीवित देखकर गुरू संदीपनी को पूर्ण विश्वास हो गया कि श्री कृष्‍ण निश्चय ही प्रभु का अवतार है क्योंकि मरे हुए व्यक्ति को जीवित करना किसी मनुष्य की नहीं वरन देवता के वश की ही बात है।

कौरवो की सभा में द्रोपदी के चीर हरण के समय द्रौपदी ने श्री कृष्‍ण से मदद की विनती की और तभी द्रौपदी की साड़ी इतनी लंबी होती चली गई की दुष्ट दुशासन साड़ी खींचते खींचते थक हार कर बैठ गया। द्रौपदी ने इस तरह से अपनी लाज बचते देखकर मान लिया की श्री कृष्‍ण पृथ्वी पर साधारण मनुष्य नहीं वरन दैवीय अवतार है।

अवश्य पढ़ें :-  कैसी भी हो पथरी उसका इलाज बिना ऑपरेशन के भी संभव है, जानिए पथरी का अचूक आयुर्वेदिक उपचार

महाभारत के युद्ध से पूर्व जब श्री कृष्‍ण पांडवों के दूत बनकर दुर्योधन के पास पहुंचे तो दुर्योधन ने उन्हें बंदी बनाने का आदेश दिया । इस समय श्री कृष्‍ण ने अपना दिव्य रूप धारण किया जिसे देखकर पूरी सभा हैरान हो गयी । उस समय भीष्म और व‌िदुर ने श्री कृष्‍ण जी को साक्षात् विष्णु भगवान के रूप में देखा था ।

श्री कृष्ण जी महाभारत युद्ध के दौरान हर दिन प्रात: उस दिन युद्ध में मरने वाले योद्धाओं की संख्या की भविष्वाणी कर देते थे। प्रत्येक दिन मूंगफली खाकर युद्ध में मरने वालों की संख्या की बिलकुल सटीक भविष्यवाणी करने यह बताता है कि श्री कृष्‍ण ईश्वर का ही रूप थे ।

महाभारत के युद्द से पूर्व युद्ध के मैदान में विराट रूप धारण करके अर्जुन को गीता के उपदेश के माध्यम से जीवन और मृत्यु के रहस्य का बोध कराना, यह घटना इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि श्री कृष्ण जी मनुष्य शरीर में श्री विष्णु जी के अवतार थे ।

श्रीकृष्ण के शरीर से मादक गंध आती थी। इस वजह से कई बार वेष बदलने के बाद भी कृष्ण पहचाने जाते थे। शास्त्रों के अनुसार कृष्ण के शरीर से गोपिकाचंदन और और रातरानी की मिलीजुली खुशबू आती थी। बहुत से लोग इस गंध कोअष्टगंध भी कहते है |

भगवान श्री कृष्ण के पुरे शरीर का रंग श्याम (सांवला ) किन्तु तेज से भरा था था और उनके शरीर से हमेशा मादक सी गंध निकलती रहती थी।

अज्ञातवास में उन्होंने सैरंध्री का कार्य चुना था जिससे चन्दन और उबटन की खुशबु के बिच उनकी असली गंध छुपी रहे। इस तरह की गंध किसी भी साधारण मनुष्य से नहीं आती थी इसलिए भी लोगो को यह विश्वास हो गया कि वह एक दैवीय शक्ति है।

श्रीकृष्ण चिरयुवा माने जाते है। कहते है कि भगवान श्रीकृष्ण ने जब देहत्याग किया तो उनकी उम्र 119 वर्ष थी कुछ लोग उनकी उम्र 125 वर्ष बताते है लेकिन देह छोड़ने के समय तक उनके देह के कोई केश न तो श्वेत थे और ना ही उनके शरीर पर किसी प्रकार की झुर्रियां थी। अर्थात वे तब भी युवा जैसे ही थे।

बहुत से लोग यह मानते है कि उन्होंने अपनी योग क्रियाओं से अपने आप को इतने सालो तक जवान रखा था लेकिन ज्यादातर लोग यह मानते है कि योग तो बड़ी संख्या में करते थे लेकिन उनमें ऐसी कोई भी बात नहीं थी क्योंकि श्री कृष्ण जी मानव नहीं अवतार थे।

हिन्दु धर्म में गाय को बहुत महत्व दिया गया है। भगवान भी गौ की पूजा करते है, सारे देवी-देवताओं का वास गाय में होता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति गौ की सेवा करता है गौ माता उसकी सारी इच्छाएँ निश्चय ही पूरी कर देती है।

शास्त्रों के अनुसार जो पुण्य तीर्थों में स्नान-दान करने से, ब्राह्मणों को भोजन कराने से, व्रत-उपवास और जप-तप और हवन- यज्ञ करने से मिलता है, वही पुण्य गौ माता को मात्र चारा या हरी घास खिलाने से ही प्राप्त हो जाता है…..।

गौ का मूत्र, गोबर, दूध, दही और घी, इन्हे पंचगव्य कहते हैं। मान्यता है कि इनका सेवन करने से शरीर के भीतर कोई भी रोग / पाप नहीं ठहरता है।

जो गौ की एक बार प्रदक्षिणा करके उसे प्रणाम करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर अक्षय स्वर्ग का सुख भोगता है।
भगवान श्रीकृष्ण को गाय अत्यन्त प्रिय है। श्री कृष्ण जी ने गोमाता की दावानल से रक्षा की, ब्रह्माजी से छुड़ाकर लाए, और गोवर्धन पर्वत धारण करके इन्द्र के कोप से गोप, गोपी एवं गायों की रक्षा की।

भविष्यपुराण में श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा है–समुद्रमंथन के समय क्षीरसागर से लोकों की कल्याणकारिणी जो पांच गौएँ उत्पन्न हुयीं थीं उनके नाम थे–”नन्दा, सुभद्रा, सुरभि, सुशीला और बहुला”।
इन्हें कामधेनु कहा गया है।

जब श्रीकृष्ण सांदीपनिमुनि के आश्रम में विद्याध्ययन के लिए गए वहां भी उन्होंने गो-सेवा की। कहते है कि नंदबाबा के पास नौ लाख गौएँ थीं। द्वारिका में वह 13,084 गायों का दान प्रतिदिन करते थे।

गायों को भी श्रीकृष्ण के सानिध्य से परम सुख मिलता था । जैसे ही गायें श्री कृष्ण जी को देखतीं थे वे उनके शरीर को चाटने लगतीं थी।

माना जाता है कि श्री कृष्ण जी को नंदबाबा की सभी नौ लाख गायो के नाम जुबानी याद थे । श्री कृष्ण जी की हर गाय का अपना एक नाम था और कृष्ण जी की स्मरण शक्ति इतनी त्रीव थी कि वह हर गाय को उसके नाम से पुकारते हैं और जिस भी गाय को वह पुकारते वह गाय उनके पास दौड़ी चली आती है और उसके थनों से स्वत: ही दूध चूने लगता है।

कान्हा की वंशी की ध्वनि से प्रत्येक गाय को नाम ले-लेकर जब पुकारते थे और वंशी की टेर सुनकर वे गायें चाहे कितनी भी दूर क्यों न हों, दौड़कर उनके पास पहुंच जातीं और चारों ओर से उन्हें घेरकर खड़ी हो जाती हैं।
ऐसा देखकर समस्त गावँ वालो को यह विश्वास हो गया था कि इतनी त्रीव स्मरण शक्ति किसी देवता की ही हो सकती है साधारण मनुष्य की नहीं।

Pandit Ji
Pandit Jihttps://www.memorymuseum.net
MemoryMuseum is one of the oldest and trusted sources to get devotional information in India. You can also find various tools to stay connected with Indian culture and traditions like Ram Shalaka, Panchang, Swapnphal, and Ayurveda.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Translate »