श्री महालक्ष्मी अष्टकम्, Shri Maha Lakshmi Ashtakam,
श्री महालक्ष्मी अष्टकम, shri maha lakshmi ashtakam, के नित्य पाठ से जीवन में नहीं रहेगी किसी भी चीज़ की कमी, सुख और ऐश्वर्य की होगी प्राप्ति,
श्री महालक्ष्मी अष्टकम्, Shri Maha Lakshmi Ashtakam, का पाठ धन की दात्री श्री महालक्ष्मी जी को अत्यंत प्रिय है । इसके रचयिता श्री इंद्रदेव जी हैं इसको सर्वप्रथम पढ़ा भी देवराज इंद्र जी ने ही था ।
इस भौतिक संसार में धन की चाह रखने वाले सभी मनुष्यों को, जो भी मनुष्य धन-वैभव की कमी के कारण धनाभाव में जी रहे हैं, उन्हें नित्य या हर शुक्रवार को श्री महालक्ष्मी अष्टकम्, Shri Maha Lakshmi Ashtakam, स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए।
मान्यता है कि इस ब्रह्माण्ड में सबसे अधिक संपदा और ऐश्वर्य देवराज इंद्र के पास है, लेकिन अपने घमंड एक बार देवराज इंद्र को भी धन विहिन होना पड़ा था।
तब रूठी हुई लक्ष्मी जी को मनाने के लिए इंद्र देव ने श्री महालक्ष्मी स्त्रोत्र, Shri Maha Lakshmi Ashtakam, की रचना एवं विशेष तरह से ऐश्वर्य दात्री लक्ष्मी जी की पूजा की तब फिर से उन पर माँ लक्ष्मी की कृपा हुई ।
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इसको, कुछ खास अवसरों पर, जैसे हर पूर्णिमा, नवरात्री के समस्त दिन, एकादशी, अक्षय तृतीया, आदि पर इसका साविधि पाठ करने से मां लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न होती इस जीवन में किसी भी सुख का अभाव नहीं रहता हैं, समस्त भौतिक और सांसारिक सुख सहज ही प्राप्त हो जाते है ।
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श्री महालक्ष्मी अष्टकम्, Shri Maha Lakshmi Ashtakam,
श्री इन्द्र उवाच
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।१।।
इन्द्र देव कहते है –श्रीपीठ पर स्थित और देवताओं से पूजित होने वाली हे महामाये। आपको प्रणाम है। अपने हाथ में शंख, चक्र और गदा धारण करने वाली हे देवी महालक्ष्मी! आपको प्रणाम है।
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।२।।
गरुड़ पर आरुढ़ हो कोलासुर को भय देने वाली और समस्त पापों को हरने वाली हे भगवति महालक्ष्मी तुम्हे प्रणाम है।
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सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।३।।
सब कुछ जानने वाली, सबको वर देने वाली, समस्त दुष्टों को भय देने वाली और सबके दु:खों को दूर करने वाली, हे देवि महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है।
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।।४।।
सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देने वाली हे मन्त्रपूत भगवति महालक्ष्मि! तुम्हें सदा प्रणाम है।
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।५।।
हे देवि! हे आदि-अन्तरहित आदिशक्ति! हे महेश्वरि! हे योग से प्रकट हुई भगवति महालक्ष्मी तुम्हें नमस्कार है।
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।६।।
हे देवि! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली हो। हे देवि महालक्ष्मी तुम्हें नमस्कार है।
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणी।
परमेशि जगत माता महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।७।।
हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्मस्वरूपिणी देवि! हे परमेश्वरि! हे जगदम्ब! हे महालक्ष्मी तुम्हें मेरा प्रणाम है।
श्वेताम्भर धरे देवि नानालंकारभूषिते।
जगत्स्थिते जगमाते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।८।।
हे देवि तुम श्वेत वस्त्र धारण करने वाली और नाना प्रकार के आभूषणों से विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत् में व्याप्त एवं अखिल लोक को जन्म देने वाली हो। हे महालक्ष्मी तुम्हें मेरा प्रणाम है।
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महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः ।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥9॥
अर्थात : जो मनुष्य भक्ति युक्त होकर इस महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र का सदा पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राज्यवैभव को प्राप्त कर सकता है.
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम् ।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः ॥10॥
अर्थात : जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है, उसके बडे-बडे पापों का नाश हो जाता है. जो दो समय पाठ करता है, वह धन-धान्य से सम्पन्न होता है.
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम् ।
महालक्ष्मी भवेनित्यम प्रसंनाम वरदाम शुभाम ॥11॥
अर्थात : जो प्रतिदिन तीन काल पाठ करता है उसके शत्रुओं का नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न होती हैं.
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