shradh ka adhikar, श्राद्ध का अधिकार,
श्राद्ध का अधिकार किसे है, किसे करना चाहिए श्राद्ध,
हिन्दु धर्म के अनुसार मरणोपरांत संस्कारों को पूरा करने के लिए पुत्र का प्रमुख स्थान माना गया है। शास्त्रों में लिखा है कि पितृ Pitra को नरक से मुक्ति पुत्र द्वारा ही मिलती है इसीलिए पुत्र को ही पितरों के तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध का अधिकार, shradh ka adhikar, दिया गया है।
शायद यही कारण है कि हर मनुष्य अपनी मुक्ति और नरक से रक्षा करने के लिए पुत्र की अवश्य ही कामना करता है।
और जो व्यक्ति जान बूझकर या अनजाने में अपने पिता और पितरों के निमित श्राद्ध में तर्पण Shardh Me Tarpan, श्राद्ध Shardh, दान Daan, पिंडदान Pind Daan आदि नहीं करता है उन्हें संतुष्ट नहीं करता है वह घोर नरक का भागी होता है ।
* लेकिन यदि किसी के पुत्र नहीं है तो क्या होगा ? जानिए शास्त्रों के अनुसार पुत्र न होने पर कौन-कौन अपने पितरों के श्राद्ध का अधिकारी Shradh ka Adhikari हो सकता है।
* शास्त्रों के अनुसार पिता का श्राद्ध Pita Ka Shradh पुत्र को ही करना चाहिए, तभी पिता को मोक्ष और उस पुत्र को पितृ ऋण Pitra Rin से मुक्ति मिलती है ।
* शास्त्रों के अनुसार पुत्र के न होने पर उस व्यक्ति की पत्नी अपने पति का श्राद्ध कर सकती है।
* शास्त्रों के अनुसार पुत्र और पत्नी के न होने पर सगा भाई और यदि वह भी नहीं है तो संपिंडों को श्राद्ध करना चाहिए।
* शास्त्रों के अनुसार एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करने का अधिकारी है।
* शास्त्रों के अनुसार पुत्री का पति एवं पुत्री का पुत्र भी श्राद्ध के अधिकारी हैं।
* शास्त्रों में यह भी लिखा है कि पुत्र के न होने पर पौत्र या प्रपौत्र को श्राद्ध करना चाहिए ।
* शास्त्रों में यह भी लिखा है कि पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र किसी के भी न होने पर विधवा स्त्री श्राद्ध कर सकती है।
* शास्त्रों के अनुसार कोई अपनी पत्नी का श्राद्ध तभी कर सकता है, जब उसका कोई पुत्र न हो।
* शास्त्रों के अनुसार पुत्र, पौत्र या पुत्री का पुत्र न होने पर भतीजा भी श्राद्ध कर सकता है।
* शास्त्रों में यह भी लिखा है कि इन सब के ना होने पर गोद में लिया पुत्र भी श्राद्ध का अधिकारी है।
* शास्त्रों के अनुसार किसी के भी ना होने पर राजा को उसके धन से श्राद्ध करने का विधान है।
* यदि घर का बड़ा लड़का अपने पिता और पूर्वजो का श्राद्ध नहीं करता है और उसके कई पुत्र है तो किसी अन्य पुत्र को यह दायित्व अवश्य ही संभाल लेना चाहिए ।
* पितृ पक्ष, श्राद्ध और पितरों के महत्व के बारे में बहुत से धर्म शास्त्रों में उल्लेख मिलता है । ‘मनुस्मृति’, ‘याज्ञवलक्यस्मृति’ जैसे धर्म ग्रंथों के आलावा हमारे पुराणों में भी श्राद्ध को अत्यंत महत्वपूर्ण कर्म बताते हुए उसे अनिवार्य रूप से करने के लिए कहा गया है।
‘गरुड़पुराण’ के अनुसार विभिन्न नक्षत्रों में किये गए श्राद्धों का फल निम्न प्रकार मिलता है।
1. कृत्तिका नक्षत्र में किया गया श्राद्ध जातक की समस्त कामनाओं को पूर्ण करता है।
2 . रोहिणी नक्षत्र में श्राद्ध होने पर संतान का सुख मिलता है ।
3 . मृगशिरा नक्षत्र में श्राद करने से गुणों में वृद्धि होती है ।
4 . आर्द्रा नक्षत्र में श्राद्ध करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ।
5 . पुनर्वसु नक्षत्र में श्राद्ध करने से जातक को सुंदर शरीर मिलता है ।
6 . पुष्य नक्षत्र में श्राद्ध करने से श्राद्धकर्ता को सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है ।
7 . आश्लेषा नक्षत्र में श्राद्ध करने से जातक निरोगी और दीर्घायु होता है ।
8 . मघा नक्षत्र में श्राद्ध करने से अच्छी सेहत मिलती है ।
9 . पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में श्राद्ध करने से भाग्य प्रबल होता है ।
- हस्त नक्षत्र में श्राद्ध करने से ज्ञान, विद्या और बुद्धि की प्राप्ति होती है ।
11 . चित्रा नक्षत्र में श्राद्ध करने से कुल का नाम रौशन करने वाली संतान मिलती है ।
12 .स्वाति नक्षत्र में श्राद्ध करने से व्यापार रोज़गार में आशातीत लाभ मिलता है ।
13 . विशाखा नक्षत्र में श्राद्ध करने से वंश में वृद्धि होती है ।
14 . अनुराधा नक्षत्र में श्राद्ध करने से मान सम्मान मिलता है।
15 . ज्येष्ठा नक्षत्र में श्राद्ध करने से प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि होती है ।
16 . मूल नक्षत्र में श्राद्ध करने से जातक को निरोगिता और दीर्घ आयु प्राप्त होती है ।