हिन्दु धर्म शास्त्रों के अनुसार किसी भी शुभ कार्य में भद्रा योग का अवश्य ध्यान रखा जाता है। क्योंकि भद्रा काल में किसी भी शुभ कार्य का आरम्भ या अंत अशुभ माना जाता है। इसलिए भद्रा काल में कोई भी आस्थावान, बुद्धिमान व्यक्ति शुभ कार्य बिलकुल भी नहीं करता है।
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य देव की पुत्री और शनि देव की बहन है। भगवान शनि देव की तरह ही इसका स्वभाव भी उग्र कहा गया है। अत: उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही परम पिता भगवान ब्रह्मा ने उन्हें पंचाग के एक प्रमुख अंग विष्टी करण में स्थान दिया है। कहते है कि जब भद्रा किसी पर्व काल में स्पर्श करती है तो जब तक वह रहती है उसे श्रद्धावास माना जाता है।
भद्रा का समय 7 से 13 घंटे 20 मिनट तक माना गया है, लेकिन बीच में नक्षत्र व तिथि के अनुक्रम तथा पंचक के पूर्वार्द्ध नक्षत्र के मान व गणना के कारण इसके समय में घट-बढ़ होती रहती है। भद्रायुक्त पर्व काल का वह समय छोड़ देना चाहिए, जिसमें भद्रा के मुख तथा मध्य का काल आता हो।
हिन्दु पंचांग के पांच प्रमुख अंग माने जाते हैं। यह है – तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इनमें करण एक महत्वपूर्ण अंग माना गया है । यह तिथि का आधा भाग होता है। करण की संख्या 11 होती है। यह चर और अचर दो भागों में बांटे गए हैं। इन 11 करणों में सातवें करण ‘विष्टि’ का नाम ही भद्रा है। भद्रा सदैव गतिशील रहती है। हिन्दु पंचाग शुद्धि में भद्रा का खास महत्व माना जाता है।
वैसे तो भद्रा का शाब्दिक अर्थ कल्याण करने वाली है लेकिन इस अर्थ के बिलकुल विपरीत भद्रा या विष्टी करण में लगभग सभी शुभ कार्य निषेध माने जाते हैं। हमारे ज्योतिष विज्ञान के अनुसार भद्रा अलग-अलग सभी राशियों के अनुसार तीनों लोकों में घूमती है।
लेकिन जब यह मृत्युलोक में होती है, तब सभी शुभ कार्यों में बाधक, उनका नाश करने वाली कही गई है।
ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार जब चन्द्रमा, कर्क, सिंह, कुंभ व मीन इन चार राशि में विचरण करता है और भद्रा विष्टी करण का योग बनता है, तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है। और इस समय सभी कार्य शुभ कार्य निषेध होते है। भद्राकाल में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश और रक्षा बंधन आदि शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।
लेकिन भद्राकाल में स्नान करना, यज्ञ करना, स्त्री प्रसंग, अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग करना, शल्य क्रिया करना , कोर्ट में मुकदमा दायर करना, अग्नि जलाना , किसी वस्तु को काटना, भैंस, घोड़ा, ऊंट संबंधी कार्य करने के योग्य माने जाते हैं।
भद्रा के बारह नाम : – धान्या, दधि मुखी, भद्रा, महामारी, खरानना, कालरात्रि, महारूद्रा, विष्टिकरण, कुलपुत्रिका, भैरवी, महाकाली, असुरक्षयकारी हैं।
भद्रा दोष निवारण के उपाय :शास्त्रों के अनुसार जिस दिन भद्रा हो और यदि उस दिन कोई शुभ कार्य करना ही पड़े तो उस दिन उपवास अवश्य ही करना चाहिए।
एक बात अवश्य ही ध्यान दे कि यदि भद्रा के समय कोई अति आवश्यक कार्य करना ही हो तो भद्रा की प्रारंभ की 5 घटी जो भद्रा का मुख होती है, उसे अवश्य ही त्यागना चाहिए।
भद्रा 5 घटी मुख में, 2 घटी कंठ में, 11 घटी ह्रदय में और 4 घटी पुच्छ में स्थित रहती है। यदि भद्रा के समय कोई अति आवश्यक कार्य करना हो तो भद्रा की प्रारंभ की 5 घटी जो भद्रा का मुख होती है, अवश्य त्याग देना चाहिए।
जब भद्रा मुख में होती है तो कार्य का नाश होता है।
जब भद्रा कंठ में होती है तो धन-समृद्धि का नाश होता है।
जब भद्रा हृदय में होती है तो प्राण का नाश होता है।
जब भद्रा पुच्छ में होती है, तो सभी कार्यों में विजय प्राप्त होती है ।
कृष्णपक्ष की तृतीया,दशमी के उत्तरार्ध में एवं सप्तमी,चतुर्दशी,के पूर्वार्ध में भद्रा रहती है ।
शुक्लपक्ष की चतुर्थी, एकादशी के उत्तरार्ध में एवं शुक्लपक्ष की अष्टमी और पूर्णिमा के पूर्वार्ध में भद्रा रहती है ।
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