द्वादश ज्योतिर्लिंग, davadash jyotirling,
श्री सोमनाथ | श्री मल्लिकार्जुन | श्री महाकाल |
श्री ओंकारेश्वर | श्री बैद्यनाथ | श्री भीमशंकर |
श्री रामेश्वरम् | श्री नागेश्वर | श्री काशी विश्वनाथ |
श्री त्र्यंम्बकेश्वर | श्री केदारनाथ | श्री घृष्णेश्वर |
भगवान शिव के बारह अति पवित्र ज्योतिर्लिंग / द्वादश ज्योतिर्लिंग, davadash jyotirling, भारत वर्ष के अलग-अलग भागों में प्रतिष्ठित हैं।
शिवपुराण में इन द्वादश ज्योतिर्लिंग, davadash jyotirling, का विस्तार से उल्लेख है। बहुत ही महान पुण्यात्मा होंगे वह जातक जिन्होंने अपने जीवन में इन सभी बारहों ज्योतिर्लिंगों का दर्शन किया है ।
मान्यता है कि इनके दर्शन मात्र से सभी तीर्थों का फल प्राप्त होता है। भगवान भोलेनाथ निरोगता और दीर्घ आयु प्रदान करने वाले है। इनके भक्तों की आकाल मृत्यु से रक्षा होती है ।
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कहते है कि जो भी मनुष्य नित्य इनके दर्शन करके इन द्वादश ज्योतिर्लिंग, davadash jyotirling, के नामो का उच्चारण करता है उसके सभी पाप नष्ट हो जाते है, धीरे धीरे उसका यश सभी दिशाओं में फैलने लगता है, उसको जीवन में कोई भी आभाव कोई भी संकट नहीं रहता है, उसे धन की कोई भी कमी नहीं रहती है, वह अपने परिवार के साथ प्रेमपूर्वक जीवन व्यतीत करते हुए अंत में स्वर्ग को प्राप्त होता है।
इसलिए नित्य सभी मनुष्यों को इन सभी ज्योतिर्लिंगों के दर्शन और इनका उच्चारण अवश्य ही करना चाहिए।
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग, Bhagwan Shiv Ke 12 Jyotirling,
1. सोमनाथ (Somnath) प्रभास, सौराष्ट्र, गुजरात :- सोमनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में पहला ज्योतिर्लिंग है। यह मंदिर गुजरात के वेरावल में स्थित है और मान्यता है कि सोमनाथ मंदिर का निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने किया था। ऋगवेद, स्कंदपुराण और महाभारत में भी इस मंदिर की महिमा का वर्णन मिलता है।
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2. मल्लिकार्जुन (Mallikarjun) (कुर्नूल, आंध्र प्रदेश, ) :- श्रीमल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल पर्वत पर विराजमान हैं। इसे दक्षिण भारत का कैलाश पर्वत भी कहते हैं। महाभारत में लिखा है की श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। श्रीशैल के शिखर के दर्शन मात्र करने से भक्तो के सभी प्रकार के कष्ट दूर भाग जाते हैं।
माँ शिव और पार्वती जी के पुत्र भगवान कार्तिकेय जी माता-पिता से अलग होकर क्रौंच पर्वत पर रहने लगे। उनको मनाकर वापस लाने के लिए पारवती जी भगवान शंकर जी के साथ क्रौंच पर्वत पर पहुँच गईं। माता-पिता के आगमन की सूचना मिलने पर कार्तिकेय जी वहाँ से तीन योजन (छत्तीस किलोमीटर )दूर चले गये।
कार्तिकेय के चले जाने पर भगवान शिव उस क्रौंच पर्वत पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गये तभी से वे ‘मल्लिकार्जुन’ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुए।
माता पार्वती का नाम ‘मल्लिका’ है, जबकि भगवान शंकर को ‘अर्जुन’ कहा जाता है। इसलिए वह ज्योतिर्लिंग ‘मल्लिकार्जुन’ के नाम से जगत् में प्रसिद्ध हुआ ।
महाकालेश्वर (Mahakaleshwar)( उज्जैन, मध्य प्रदेश )
ओंकारेश्वर (Omkareshwar) ( नर्मदा नदी में एक दीप पर, मध्य प्रदेश )
वैद्यनाथ (vaidyanath) (देवघर, झारखंड )
भीमाशंकर (Bhimashankar) (पुणे , महाराष्ट्र )
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रामेश्वरम् (Rameshwaram)( रामनाड, रामेश्वरम, तमिलनाडु )
नागेश्वर (Nageshwar)( द्वारका, गुजरात )
काशी विश्वनाथ (Kashi Vishwanath) ( वाराणसी, उत्तर प्रदेश )
त्रयम्बकेश्वर (Trimbakeshwar) (त्रयम्बकेश्वर नासिक, महाराष्ट्र )
केदारनाथ (Kedarnath) ( केदारनाथ, उत्तराखंड,)
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घृष्णेश्वर (Grishneshwar) ( औरंगाबाद, महाराष्ट्र,)
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