देव प्रबोधनी एकादशी कथा, Dev prabodhani ekadashi katha,
दीपावली के ग्यारहवें दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी Kartik Shukl Paksh Ki Ekadashi देव उत्थान एकादशी Dev Utthan Ekadashi/ प्रबोधिनी एकादशी Prabodhani Ekadashi के रूप में मनाई जाती है। इस एकादशी, ekadashi के दिन भगवान श्री विष्णु चार मास बाद क्षीर सागर से अपनी योग निद्रा से जागते है और इसी दिन से समस्त शुभ कार्यो का आरम्भ हो जाता है।
इस देव उठनी एकादशी Dev Uthani Ekadashi के दिन से ही विवाह, मुंडन, नामकरण आदि मांगलिक कार्यो का योग बनना भी शुरू हो जाता है।
विष्णुपुराण के अनुसार इस दिन जो भी जातक भगवान विष्णु की विधि पूर्वक पूजा, उनका स्मरण करते हैं उनके समस्त दुख दूर होते हैं. उनके सभी मनोरथ निश्चय ही पूर्ण होते है।
वर्ष 2024 में देवोत्थान एकादशी का पर्व मंगलवार 12 नवंबर को है।
पुराणों के अनुसार इस प्रबोधिनी एकादशी का ब्रत Prabodhini Ekadashi Ka Vrat रखने से समस्त तीर्थों के दर्शन, सौ राजसूय यज्ञ और हज़ार अश्मेघ यज्ञ से भी अधिक पुण्य प्राप्त होता है।
इस देव उठनी एकादशी Ekadashi के माहात्म्य के बारे में ब्रह्माजी ने देवर्षि नारद से कहा कि हे पुत्र ! जिस वस्तु का तीनो लोको में भी मिलना कठिन है, वह वस्तु भी कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की इस ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के व्रत से अवश्य ही मिल जाती है ।
जो मनुष्य इस दिन श्रद्धापूर्वक थोड़ा भी पुण्य करते हैं, उनका वह पुण्य विशाल पर्वत के समान अटल हो जाता है । उनके पितृगण को विष्णुलोक में स्थान मिलता हैं ।
जो मनुष्य इस देव उठनी एकादशी Ekadashi व्रत को करता है, इस व्रत की कथा को पड़ता है, वह धनवान, प्रतापी, तेजवान,अपनी इन्द्रियों को जीतनेवाला होता है,तथा भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय होता है ।
‘प्रबोधिनी एकादशी’prabodhani ekadashi के दिन भगवान श्री हरि की विधिपूर्वक आराधना करने से इसका फल तीर्थ, जप और दान आदि के पुण्य से से करोड़ गुना अधिक होता है ।
इस दिन रात्रि जागरण का फल चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण में किये गए स्नान और पुण्य से हज़ार गुना अधिक होता है।
शास्त्रों के अनुसार इस दिन रात में जागरण करने से कई पीढ़ियों को मरणोपरांत स्वर्ग मिलता है, पितरो को भी स्वर्ग में स्थान मिलता है।
मान्यता है कि इस देव उठनी एकादशी Ekadashi की कथा सुनने से सभी पितरो का क्षण भर में ही उद्धार हो जाता है, सारे कुटुम्ब को पुण्य मिलता है ।
इस एकादशी की कथा सुनने / पढ़ने हज़ारो गायो के दान से भी अधिक पुण्य प्राप्त होता है, समस्त संसारिक सुख मिलते है,
अत: हर जातक को इस देव प्रबोधनी एकादशी की कथा अनिवार्य रूप से निश्चय ही सुननी / पढ़नी चाहिए ।
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देव उत्थान एकादशी की कथा
Dev Uthani Ekadashi ki katha
कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव उत्थान एकादशी / देव उठानी एकादशी / प्रबोधिनी एकादशी कहते है। देव उत्थान का तात्पर्य है देव का उठना या जागना।’ शास्त्रों के अनुसार एक समय भगवान श्री विष्णु का शंखचूर नामक महाअसुर से घोर युद्ध हुआ, अंत में विष्णु जी ने उसे परास्त करके यमपुरी भेज दिया।
युद्ध करते हुए भगवान स्वयं भी काफी थक गये तो वह चार मास के लिए योगनिद्रा में चले गये। जिस दिन भगवान योग निद्रा में शयन के लिए गये उस दिन आषाढ़ शुक्ल एकादशी की तिथि थी, शास्त्रों के अनुसार उस दिन से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक भगवान योग निद्रा में रहते हैं अत: इन चार मासों में मांगलिक कार्य नहीं होते है।
कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन जब भगवान अपनी निद्रा से जगते हैं तो उसी दिन से शुभ दिनों की, शुभ कार्यो की शुरूआत होती है, अत: इस दिन को देव उत्थान एकादशी कहते है।
एक अन्य कथा के अनुसार एक समय भगवान श्री विष्णु जी से माँ लक्ष्मी जी ने कहा- ‘हे प्रभु ! अब आप दिन-रात जागा करते हैं और सोते हैं तो लाखों-करोड़ों वर्ष तक को सो जाते हैं तथा उस समय समस्त चराचर का नाश भी कर डालते हैं। अत: हे नाथ मेरी आपसे प्रार्थन है कि आप प्रतिवर्ष नियम से निद्रा लिया करें। इससे मुझे भी कुछ समय विश्राम करने का समय मिल जाएगा।’
देवी लक्ष्मी जी की बात सुनकर भगवान श्री विष्णु जी मुस्काराए और बोले- ‘हे देवी’! तुमने ठीक कहा है। मेरे लगातार जागने से सब देवों को और विशेष कर आपको भी कष्ट होता है। आपको मेरी सेवा से जरा भी अपने लिए अवकाश नहीं मिलता।
इसलिए, मैं आपके कहेनुसार आज से प्रति वर्ष वर्षा ऋतु में चार मास के लिए शयन किया करूंगा। उस समय आपको और सनी समस्त देवगणों को अवकाश मिल जायेगा।
विष्णु जी ने आगे कहा मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी। यह मेरी अल्पनिद्रा मेरे सभी भक्तों के लिए परम मंगलकारी और पुण्य प्रदान करने वाली होगी। हे प्रिये, मेरे इस निद्रा के काल में मेरे जो भी भक्त पूर्ण श्रद्धा से मेरी सेवा करेंगे उनके घर में मैं सदैव आपके सहित निवास करूँगा।
देव प्रबोधनी एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को दशमी के दिन से ही सात्विक आहार लेना चाहिए। इस एकादशी के दिन सर्योदय से पूर्व उठाकर स्नान आदि करके पूर्ण विधि से भगवान विष्णु एवं लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए।
इस दिन विष्णु भगवान को तुलसी का पत्ता चढ़ाएं। लेकिन जातक जो व्रत कर रहे हों उन्हें स्वयं तुलसी पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए।
इस दिन तुलसी विवाह का भी बहुत महत्व है । इस दिन संध्या काल में भगवान श्री विष्णु की शालिग्राम रूप में पूजा करनी चाहिए। इस एकादशी का व्रत करने वालों को द्वादशी के दिन सुबह ब्रह्मण को भोजन करवा कर पीला जनेऊ, सुपारी एवं दक्षिण देकर विदा करना चाहिए फिर अन्न जल ग्रहण करना चाहिए। शास्त्रों में इस व्रत का परायण तुलसी के पत्ते से करने का विधान बताया गया है।
इस दिन होगा तुलसी विवाह, तुलसी शालिग्राम विवाह के बारे में जानना इसलिए है अति पुण्यदायक
देव उठानी एकादशी/प्रबोधिनी एकादशी के दिन एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल, पकवान, मिष्ठान, बेर, सिंघाड़े, ऋतुफल, नारियल,और गन्ना उस स्थान पर रखकर परात अथवा डलिया से ढक दिया जाता है तथा एक दीपक भी जला दिया जाता है।
रात्रि को परिवार के सभी वयस्क सदस्य देवताओं का भगवान विष्णु सहित सहित विधिवत पूजन करने के बाद प्रात:काल भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर जगाते हैं।
इस दिन भगवान विष्णु को घंटे घड़ियालों को बजा कर उठो देवा, बैठो देवा, उँगरिया चटकाओ देवा कह कह कर जागते है । हरि के जागने के बाद ही इस एकादशी से सभी शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं।
इस एकादशी के दिन दान करने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है जिससे आने वाली कई पीढ़ियों को भी धन-ऐश्वर्य की कोई भी कमी नहीं रहती है।