शनि अमावस्या, shani amavasya, शनि अमावस्या 2024,
जब शनिवार के दिन अमावस्या ( Amavasya ) का समय हो जिस कारण इसे शनि अमावस्या Shani Amavasya कहा जाता है। शनि अमावस्या, Shani Amavasya के दिन श्री शनिदेव की आराधना करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होंती हैं। यह पितृकार्येषु अमावस्या के रुप में भी जानी जाती है।
कालसर्प योग, ढैय्या तथा साढ़ेसाती सहित शनि संबंधी अनेक बाधाओं से मुक्ति पाने का शनि अमावस्या, Shani Amavasya दुर्लभ समय होता है ।
30 नवम्बर शनिवार को मार्गशीर्ष माह की अमावस्या है।
श्री शनिदेव भाग्यविधाता हैं, यदि निश्छल भाव से शनिदेव का नाम लिया जाये तो व्यक्ति के सभी कष्टï दूर हो जाते हैं। श्री शनिदेव Shanidev इस जगत में कर्मफल दाता हैं जो व्यक्ति के कर्म के आधार पर उसके भाग्य का फैसला करते हैं।
शनि अमावस्या, Shani Amavasya के दिन शनिदेव का पूजन सफलता प्राप्त करने एवं दुष्परिणामों से छुटकारा पाने हेतु बहुत उत्तम होता है। इस दिन शनि देव का पूजन सभी मनोकामनाएं पूरी करता है।
ग्रहों के मुख्य नियंत्रक हैं शनि। उन्हें ग्रहों के न्यायाधीश मंडल का प्रधान न्यायाधीश कहा जाता है। शनिदेव के निर्णय के अनुसार ही सभी ग्रह मनुष्य को शुभ और अशुभ फल प्रदान करते हैं। न्यायाधीश होने के नाते शनिदेव किसी को भी अपनी झोली से कुछ नहीं देते। वह तो शुभ-अशुभ कर्मो के आधार पर मनुष्य को समय-समय पर वैसा ही फल देते हैं।
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जैसे उन्होंने कर्म किया होता है।धन-वैभव, मान-समान और ज्ञान आदि की प्राप्ति देवों और ऋषियों की अनुकंपा से होती है जबकि आरोग्य लाभ, पुष्टि और वंश वृद्धि के लिए पितरों का अनुग्रह जरूरी है। शनि एक न्यायप्रिय ग्रह हैं। शनिदेव अपने भक्तों को भय से मुक्ति दिलाते हैं।
शनिश्चरी अमावस्या (Shaneshchari Amavasya)पर शनिदेव का विधिवत पूजन कर सभी लोग पर्याप्त लाभ उठा सकते हैं। शनि देव क्रूर नहीं अपितु कल्याणकारी हैं।
इस दिन विशेष अनुष्ठान द्वारा पितृदोष और कालसर्प दोषों से मुक्ति पाई जा सकती है। इसके अलावा शनि का पूजन और तैलाभिषेक कर शनि की साढेसाती, ढैय्या और महादशा जनित संकट और आपदाओं से भी मुक्ति पाई जा सकती है।
भविष्यपुराण के अनुसार शनिश्चरी अमावस्या शनिदेव को अधिक प्रिय रहती है।
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इस दिन पवित्र नदी के जल से या नदी में स्नान कर शनि देव का आवाहन और दर्शन करना चाहिए। शनिदेव पर नीले पुष्प, बेल पत्र, अक्षत अर्पण करके शनिदेव को प्रसन्न करने हेतु शनि मंत्र
“ॐ शं शनैश्चराय नम:”, अथवा “ॐ प्रां प्रीं प्रौं शं शनैश्चराय नम:” मंत्र का जाप करना चाहिए।
शनि अमावस्या के दिन प्रात: लोहे के बर्तन में जल में कच्चा दूध, तिल, गुड़ डाल कर पीपल के पेड़ पर चढ़ा कर धूप दीप से पूजा करते हुए पीपल की 7 परिक्रमा करें । मान्यता है कि शनि अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने से शनिदेव अत्यंत प्रसन्न होते हैं।
शनि अमावस्या के दिन हनुमान मंदिर में हनुमान जी को लाल सिंदूर अवश्य चढ़ाएं। इससे हनुमान जी प्रसन्न होते है, शनि की साढ़े साती, ढैय्या का प्रभाव दूर होता है।
इस दिन सरसों के तेल, उडद, काले तिल, कुलथी, गुड, इत्र, नीले फूल, इमरती, शनियंत्र, काले या नीले वस्त्र और शनि संबंधी समस्त पूजन सामग्री को शनिदेव पर अर्पित करना चाहिए और शनि देव का तैलाभिषेक करना चाहिए।
अमावस्या की रात्रि में 8 बादाम और 8 काजल की डिबिया काले कपडे में बांध कर सन्दूक में रखे ।
शनि अमावस्या के दिन शनि चालीसा, हनुमान चालीसा (Hanumaan Chalisa)या बजरंग बाण का पाठ अवश्य करना चाहिए। जिनकी कुंडली या राशि पर शनि की साढ़ेसाती (Shani ki Sade Sati) व ढैया का प्रभाव हो उन्हें शनि अमावस्या के दिन पर शनिदेव का विधिवत पूजन अवश्य ही करना चाहिए।
शनैश्चरी अमावस्या (Shaneshchari Amavasya) के दिन पितरों को जल देना चाहिए, उनके निमित दान अवश्य ही देना चाहिए । इससे पितृ प्रसन्न होते है उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है ।
जिन व्यक्तियों की कुण्डली में पितृदोष या जो भी कोई पितृ दोष की पीड़ा को भोग रहे होते हैं। उन्हें इस दिन दान इत्यादि विशेष कर्म करने चाहिए।
यदि पितरों का प्रकोप न हो तो भी इस दिन किया गया श्राद्ध मनुष्य को हर क्षेत्र में सफलता प्रदान करता है, क्योंकि शनिदेव की अनुकंपा से पितरों का उद्धार बडी सहजता से हो जाता है।
इस दिन दान का बहुत ही महत्त्व है ।इस दिन महाराज दशरथ द्वारा लिखा गया शनि स्तोत्र का पाठ करके शनि की कोई भी वस्तु जैसे काला तिल, काला कपड़ा, चमड़े के जूते, लोहे की वस्तु, काला चना, काला कंबल, नीला फूल दान करने से शनि साल भर कष्टों से बचाए रखते है।
शनि अमावस्या के दिन शमी के पेड़ की पूजा करने से भगवान शनि देव की कृपा मिलती है। शनि अमावस्या के दिन सांयकाल शमी के पेड़ के पास सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इससे शनि दोष दूर होते है।
जो लोग इस दिन यात्रा में जा रहे हैं और उनके पास समय की कमी है वह सफर में शनि नवाक्षरी मंत्र अथवा “कोणस्थ: पिंगलो बभ्रु: कृष्णौ रौद्रोंतको यम:। सौरी: शनिश्चरो मंद:पिप्पलादेन संस्तुत:।।” मंत्र का जप करने का प्रयास करते हैं करें तो शनि देव की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है।
शनि देव के बारे में विशेष जानकारियाँ
स्कंदपुराण के काशीखंड के अनुसार शनि देव महर्षि कश्यप के पुत्र भगवान सूर्य देव की संतान हैं। शनि देव की माता का नाम ‘छाया’ है।
इनके भाई ‘मनु सावर्णि’, ‘यमराज’, ‘अश्विनीकुमार’ है और शनि महाराज की बहन का नाम ‘यमुना’ और ‘भद्रा’ है।
शनिदेव के 8 पत्नियां मानी गयी है।
ध्वजिनी, धामिनी, कंकाली, कलहप्रिया, कंटकी, तुरंगी, महिषी, अजा ।
मान्यता है कि शनिवार के दिन उनकी पत्नियों का नाम जाप करने से भक्तों के कष्ट दूर हो जाता है।
शनि देव की संतान मांदी और नीलिमा है ।
शनि देव के गुरु भगवान भोलेनाथ हैं। भगवान शिव ने शनि महाराज से कहा कि मेरे भक्तों पर तुम अपनी वक्र दृष्टि नहीं डालोगे। इसलिए शिव भक्त शनि के कोप से मुक्त रहते हैं।
शनि देव के मित्र ‘काल भैरव’, ‘हनुमान’, ‘बुध’ और ‘राहु’ जी हैं।
शनि देव की सवारी कौआ , गिद्ध , भैंसा , कुत्ता मानी गयी है ।
शनिदेव के सिर पर स्वर्णमुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र है ।
शनि देव के हाथो में धनुष, बाण, त्रिशूल सुशोभित रहते हैं।
श्रीकृष्ण, शनि महाराज के ईष्ट देव माने जाते हैं । शनि महाराज ने कान्हा को वचन दिया था कि वह कृष्ण भक्तों को परेशान नहीं करेंगे।
शनि देव को पीपल का वृक्ष अत्यंत प्रिय है, पीपल के वृक्ष पर शनिदेव का वास रहता है। शनि देव ने स्वयं कहा है कि जो भी पीपल की सेवा करेगा उस पर शनि की सदैव कृपा बनी रहेगी ।
शनि देव को शमी का पेड़ अत्यंत प्रिय है। शास्त्रों के अनुसार, शमी के पौधे को घर पर लगाने उसे नित्य जल से सींचने, शनिवार को उसके नीचे कड़वे तेल का दीपक जलाने से शनिदेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
शमी का पौधा अपने घर में शनिवार के दिन लाना चाहिए ।
शनि देव मकर और कुम्भ राशि के स्वामी माने गए है ।
तुला, कुम्भ और मकर शनि देव की प्रिय राशियाँ मानी गयी है।
शनि के नक्षत्र पुष्य,अनुराधा और उत्तराभाद्रपद माने गए है ।
शनि देव का रत्न नीलम है । नीलमणि, जामुनिया, नीला कटेला, आदि शनि के उपरत्न हैं। शनि के अच्छे रत्न को शनिवार को पुष्य नक्षत्र में धारण करना चाहिये
शनि देव की तीसरी, सांतवी और दसवीं दृष्टि मानी गयी है ।
शनि देव के सूर्य, चन्द्र, मंगल को शत्रु, बुध, शुक्र को मित्र तथा गुरु को सम माना जाता है।
महाराष्ट्र का शनि शिगनापुर मंदिर, ग्वालियर के पास शनिश्चरा मंदिर और मथुरा में नन्द गांव के पास कोकिला बन में स्थित शनि मंदिर अत्यंत सिद्ध शनि मंदिर माने गए है।
कहते है जिसने इन तीनो मंदिर में शनि देव के दर्शन, पूजा कर ली उसे कभी भी शनि देव के कोप का सामना नहीं करना पड़ता है ।
शास्त्रों के अनुसार शनिदेव को लोहा बहुत प्रिय है अत: उन की पूजा में हमेशा लोहे के बर्तनों का ही उपयोग करना चाहिए।
शनिदेव को पश्चिम दिशा का स्वामी माना गया है, इसलिए शनि देव की पूजा करते समय मुख इसी दिशा में रखें इससे शीघ्र ही शनि देव प्रसन्न हो जाते है।
शनि देव को काला – नीला रंग पसंद है इसलिए शनिदेव की पूजा में काले या नीले रंग की चीजों का उपयोग करना बहुत शुभ रहता है।
तांबा सूर्य की धातु है और ज्योतिष शास्त्र में शनि-सूर्य एक-दूसरे के शत्रु हैं इसलिए कभी भी शनिदेव की पूजा में तांबे के बर्तनों का उपयोग नहीं करना चाहिए ।
शनिदेव की प्रतिमा के ठीक सामने खड़े होकर दर्शन नहीं करना चाहिए।
शनि देव जी को लाल कपड़े, लाल फल या लाल फूल नहीं चढ़ाएं क्योंकि लाल रंग मंगल का है और यह शनि का शत्रु ग्रह है।
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Published By : Memory Museum
Updated On : 2024-11-27 09:35:55 PM
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