लाभ पंचमी, labh Panchmi,
लाभ पंचमी, labh Panchmi को भारतवर्ष में दीपावली के अंतिम पर्व के रूप में मनाया जाता है । कहीं पर इसे लाभ पंचमी कहते हैं कहीं पर लाभ पंचमी, labh Panchmi, या फिर सौभाग्य पंचमी, saughagy panchmi, या ज्ञान पंचमी, gyan panchmi।
लाभ पंचमी का पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। 2024 में यह पर्व 06 नवम्बर बुधवार को मनाया जायेगा।
लाभ पंचमी, labh Panchmi का पर्व मां लक्ष्मी को दिवाली जितना ही प्रिय है। इस दिन माँ लक्ष्मी की पूजा अत्यंत फलदाई मानी जाती है ।
दीपावली का पर्व वर्तमान में नशेबाजी करने, पटाखा फोड़ने, जुआ खेलने या फिर गाडी या बर्तन या आभूषण खरीदने के लिए ज्यादा ही याद किया जाता है ।
परन्तु असली दीपावली तो तब है जब की हम अपने अन्दर के अँधेरे को दूर भगाएं । अपने अन्दर ज्ञान का दीपक जलाएं ।
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लाभ पंचमी, labh Panchmi,
लाभ पंचमी गुजरात और विशेषकर महाराष्ट्र में बहुत श्रद्धा से मनाई जाती है। गुजरात में यह माना जाता है कि लाभ पंचमी पर पूजा करने, नए व्यापार करने, नए सौदे करने से उनका भाग्योदय होगा।
गुजरात में गुजराती नववर्ष का प्रारम्भ दिवाली के अगले दिन से होता है। सभी लोग इस दिन से आने वाले चार दिनों के लिए छुट्टियों पर चले जाते हैं और लाभ पंचमी के दिन से ही वापस अपना कार्य शुरू करते हैं।
आज के दिन गुजरात में व्यापारी अपने नए बही खाते बनाते हैं । इन बही खातों के बाईं ओर शुभ और दाई और लाभ लिखा जाता है और इनके पहले पन्ने के बीच में स्वास्तिक का पवित्र चिन्ह बनाया जाता है।
इस दिन विशेषकर भगवान शिव का पूजन करना विशेष फलदायी होता है। लाभ पंचमी के दिन पूरे मन से भगवान शिव की पूजा करने से परिवार में सुख-शांति आती है और जीवन के समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती है।
इस दिन गणेश जी और माँ लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है, मान्यता है इस दिन गणेश जी की पूजा करने से पूरे साल व्यापार, कार्यो में विघ्न नहीं आते है ।
इस दिन सुपारी पर मौली लपेटकर चावल के अष्टदल पर उसे श्री गणेश जी के रूप में विराजित करना चाहिए, फिर चंदन, सिंदूर, अक्षत, फूल, दूर्वा से भगवान गणेश जी की पूजा करनी चाहिए ।
लाभ पंचमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं और फिर नारंग या लाल रंग के कपड़े पहन कर सूर्य देव को अर्घ्य दें ऐसा करने से भाग्य प्रबल होता है ।
लाभ पँचमी के दिन गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए सर्वप्रथम उन्हें रोली ,लाल सिंदूर का तिलक लगाएं।
दूर्वा गणेश जी को अत्यंत प्रिय है शास्त्रों के अनुसार दूर्वा में अमृत मौजूद होता है। इस दिन “इदं दुर्वादलं ऊं गं गणपतये नमः” मंत्र बोलते हुए इन्हें 5/7 /11/21 दूर्वा यानी हरी घास गिन कर अर्पित करें। ध्यान रहे कि दुर्वा गणेश जी के मस्तक पर रखना चाहिए उनके चरणों में दुर्वा नहीं रखें।
गणपति अथर्वशीर्ष के अनुसार जो व्यक्ति गणेश जी की पूजा नित्य दुर्वांकुर से करता है वह देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर के समान धनवान हो जाता है, अर्थात उस व्यक्ति के पास धन-धान्य की कभी कमी नहीं रहती है।
शमी गणेश जी को अत्यंत प्रिय है। इस दिन भगवान गणेश जी को शमी के पत्ते अवश्य ही अर्पित करें ।
गणेश जी को घी का भोग लगाने से जीवन में किसी भी वस्तु का आभाव नहीं रहता है, समस्त सुख और वैभव की प्राप्ति होती है ।
लाभ पंचमी के दिन से भगवान गणपति को अपनी मनोकामना बोलते हुए लगातार 21 / 42 दिन तक जयवित्री चढ़ाएं , इससे भगवान विघ्नहर्ता की कृपा से निश्चय ही सोचे हुए कार्य पूर्ण होते है।
लाभ पंचमी के दिन से लगातार 11 बुधवार तक भगवान गणेश जी को घी और गुड़ का भोग लगाते हुए उसे गाय को खिला दें, इससे भाग्य तेज होता है, कार्यों के विघ्न दूर होते है।
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मां लक्ष्मी के आठ स्वरूप माने गए हैं। हर रूप विभिन्न कामनाओं को पूर्ण करता है। दीपावली पर लक्ष्मी के इन आठ स्वरूपों की पूजा करने पर असीम धन-संपदा तथा सुख की प्राप्ति होती है। आज के दिन माँ लक्ष्मी को सफ़ेद रंग की मिठाई का भोग लगाएं ।
आज के दिन गुलाबी कपड़े पर श्रीयंत्र और अष्ट लक्ष्मी का चित्र स्थापित करें। गाय के घी के 8 दीपक जलाएं। गुलाब की अगरबत्ती जलाएं। लाल फूलो की माला चढ़ाएं और कमल गट्टे की माला से या माता को कमलगट्टे चढ़ाकर इस मंत्र का यथासंभव जाप करें।
मंत्र: ऐं ह्रीं श्रीं अष्टलक्ष्मीयै ह्रीं सिद्धये मम गृहे आगच्छागच्छ नमः स्वाहा।।
जाप पूरा होने के बाद आठों दीपक घर की आठ दिशाओं में लगा दें तथा कमलगट्टे कि माला को घर की तिजोरी में स्थापित करें। इस उपाय से जीवन के आठों वर्गों में सफलता प्राप्त होगी।
- श्री आदि लक्ष्मी – ॐ आद्यलक्ष्म्यै नम: – ये जीवन के प्रारंभ और आयु को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है – ॐ श्रीं।।
- श्री धान्य लक्ष्मी – ॐ धान्यलक्ष्म्यै नमः – ये जीवन में धन और धान्य को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है – ॐ श्रीं क्लीं।।
- श्री धैर्य लक्ष्मी – ॐ धैर्यलक्ष्म्यै नमः – ये जीवन में आत्मबल और धैर्य को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है – ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं।।
- श्री गज लक्ष्मी – ॐ गजलक्ष्म्यै नमः – ये जीवन में स्वास्थ और बल को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है – ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं।।
- श्री संतान लक्ष्मी – ॐ संतानलक्ष्म्यै नमः – ये जीवन में परिवार और संतान को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है – ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं।।
- श्री विजय लक्ष्मी – ॐ विजयलक्ष्म्यै नमः – ये जीवन में जीत और वर्चस्व को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है – ॐ क्लीं ॐ।।
- श्री विद्या लक्ष्मी – ॐ विद्यालक्ष्म्यै नमः – ये जीवन में बुद्धि और ज्ञान को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है – ॐ ऐं ॐ।।
- श्री ऐश्वर्य लक्ष्मी – ॐ ऐश्वर्यलक्ष्म्यै नमः – ये जीवन में प्रणय और भोग को संबोधित करती है तथा इनका मूल मंत्र है – ॐ श्रीं श्रीं।।
लक्ष्मी जी के ये आठ स्वरुप जीवन की आधारशिला है। इन आठों स्वरूपों में लक्ष्मी जी जीवन के आठ अलग-अलग वर्गों से जुड़ी हुई हैं। इन आठ लक्ष्मी की साधना करने से मानव जीवन सफल हो जाता है।
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कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी को पांडव पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार पांडवों ने कौरवों को भगवान श्रीकृष्ण के आदेश से जिस दिन हराया था, उस दिन कार्तिक शुक्ल की पंचमी थी। इसीलिए तभी से इस दिन पांचों पांडवों की पूजा होती, इस दिन को पांडव पंचमी के रूप में मनाया जाता है।
कुंडली एवं वास्तु विशेषज्ञ
पंडित ज्ञानेंद्र त्रिपाठी जी