Ganesh ji ka janam, गणेश जी का जन्म,
भगवान गणेश को विघ्नहर्ता भी कहते है। मान्यता है कि किसी भी शुभ काम को शुरू करने से पहले भगवान गणपति जी की आराधना करने से समस्त कार्य निर्विघ्न संपन्न हो जाते है। लेकिन क्या आप जानते है कि गणेश जी का जन्म, Ganesh ji ka janam, कैसे हुआ ?
शास्त्रों में गणेश जी का जन्म, Ganesh ji ka janam, के संबंध में दो कथाएं मिलती हैं। यह तो लगभग सभी लोग जानते हैं कि गणपति का धड़ कटकर उनके शरीर से अलग हो गया था और बाद में एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर गणेश जी के धड़ से जोड़ा गया था ?
लेकिन उनका सर कटा किस वजह से ? उनके सिर कटने की कथा दो प्रमुख पुराणों शिव पुराण में और ब्रह्मवैवर्त पुराण में अलग अलग लिखी है।
पहली कथा के अनुसार जो हमें शिव पुराण में मिलती है और बहुत से लोगो ने सुनी है उसके अनुसार …….. एक बार माता पार्वती स्नान करने जा रही थी उस समय घर में कोई भी नहीं था तब उन्होंने घर की देखभाल करने के लिए अपने शरीर के मैल से एक खुबसूरत बालक का पुतला बनाकर उसमें प्राण डाल दिए। उन्होंने उस खुबसूरत बालक को किसी को भी अंदर न आने देने का आदेश दिया और फिर वह स्नान करने चली गईं।
वह बालक बड़ी मुस्तेदी से घर की रक्षा करने लगा, कुछ ही देर में वहां पर भगवान भोलेनाथ आ गए और घर के अन्दर जाने लगे। बालक गणेश उन्हें नहीं पहचानते थे इसलिए उन्होंने शंकर जी को घर के अंदर जाने से रोक दिया।
भगवान शिव भी बालक को अपने घर में देखकर आश्चर्य में पड़े हुए थे, उन्होंने गणेश जी को समझाने की कोशिश की लेकिन गणपति जी पार्वती जी के आदेश के कारण अडिग थे और नहीं माने। तब भगवान शिव ने क्रोध में आकार अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया और घर के अन्दर चले गए।
जब पार्वती जी स्नान करके आईं और उनको बालक गणेश जी के वध के बारे में मालूम हुआ तो वह शोक में विलाप करने लगीं फिर उन्हें भीषण क्रोध आया इससे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में त्राहिमाम मच गया। तब सभी देवताओं ने मिलकर भगवान शिव से उस बालक को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की।
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उसे सुनकर जगत के कल्याण और माँ पार्वती को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव की आज्ञा से उनके गण जंगल में ऐसे प्राणी को ढूँढने निकले जिसका सर सोते हुए उत्तर दिशा की तरफ हो। उन्हें जंगल में एक हाथी का बच्चा उत्तर दिशा की तरफ मुँह करके सोते हुए नज़र आया।
भगवान शिव के सेवक उसे वहाँ से उठा कर शंकर जी के पास ले आये। भोलेनाथ ने उस हाथी के बच्चे का सर सूँड़-समेत काटकर बालक गणेश जी के शरीर से जोड़ दिया।
इस तरह वह बालक फिर से जीवित हो गया चूँकि उनका सर हाथी का था इसलिए सम्पूर्ण जगत में गणपति गणेश जी गजानन के नाम से जाने गए।
भगवान शिवजी ने गणेश जी को तमाम शक्तियां और सामर्थ्य प्रदान करते हुए उन्हें देवताओं में प्रथम पूज्य और समस्त गणों का देव बना दिया।
गणपति जी के जन्म के सम्बन्ध में एक और कथा ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार गणपति जी के जन्म के समय शिवलोक में उत्सव मनाया जा रहा था सभी देवता वहाँ शिवधाम पर नन्हे बालक को आशीर्वाद देने के लिए आये, लेकिन शनि देव गणेश जी को देखे बिना ही वापस जाने लगे।
यह देख माता पार्वती जी को आश्चर्य हुआ और उन्होंने शनि देव से इसका कारण पूछा। इस पर शनिदेव ने बताया कि मेरी पत्नी ने मुझे श्राप दिया है कि मैं जिस पर भी दृष्टि डालूंगा, उसका अवश्य ही अमंगल हो जाएगा।
लेकिन मां पार्वती नहीं मानी उन्होंने शनि देव से कहा कि यह संपूर्ण सृष्टि तो ईश्वर के अधीन है। बिना प्रभु की इच्छा से कुछ भी नहीं होता है। अत: तुम निर्भीक होकर मेरे बालक को देखिये और आशीर्वाद दीजिये । माँ पारवती के कहने पर जैसे ही शनि देव ने गणेश जी ओर अपनी द्रष्टि डाली उस बालक का सिर कटकर धड़ से अलग होकर हवा में विलीन हो गया।
गणेश जी की यह दशा देखकर मां पार्वती विलाप करते हुई बेहोश हो गईं। माँ पारवती की ऐसी और देवताओं की प्रार्थना पर भगवान श्री विष्णु जी गरुड़ पर सवार होकर उत्तर दिशा की ओर गए और वहां से एक हाथी के बच्चे का सर जो उत्तर की तरफ मुख करके सोया था लेकर आए। फिर उस सिर को बालक गणेश जी के धड़ से जोड़ दिया। तब से भगवान गणेश गजमुख हो गए और गजानन कहलाने लगे।
आगे हम यह जानेगें कि बालक गणेश जी के कटे हुए सर का क्या हुआ ? आखिर कहाँ पर है उनका असली सर ? इसको जानने के लिए यहाँ पर दिए गए लिंक पर क्लिक करे।
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