द्विपुष्कर योग वार, तिथि एवं नक्षत्र तीनों के संयोग से बनने वाला ऐसा विशिष्ट योग है जिसमें किये गये कार्य की पुनरावृति होती है अर्थात इस समय आप जो भी काम करेंगे उसे आपको पुन: दुहराना पड़ता है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर आप इस योग में शुभ काम करते हैं तो आपको दो-बार वह शुभ काम करने का सौभाग्य मिलेगा, आपको दो बार लाभ प्राप्त होगा ।लेकिन अगर आप इस योग में कोई अशुभ काम करते है तो, उसे भी उसे आपको दुहराना पड़ता है इसलिए इस योग में कोई भी अशुभ कार्य कतई भी नहीं करना चाहिए।
(1) भद्रा तिथि यानी द्वितीया, सप्तमी, द्वादशी अगर (2) रविवार, मंगलवार अथवा शनिवार के दिन होता है और (3) द्विपाद नक्षत्र यानी मृगशिरा, चित्रा एवं घनिष्ठा में से कोई संयोग करता है तो इन तीनों के मिलाप से यह योग बनता है।
त्रिपुष्कर (तीन गुना फल देने वाला ) योग
द्विपुष्कर योग की तरह ही त्रिपुष्कर होता है यह भी किये गये कार्य को तीन बार करवाता है| रविवार, मंगलवार या शनिवार को द्वितीया, सप्तमी या द्वादशी तिथि के साथ पुनर्वसु, उत्तराषाढ़ और पूर्वाभाद्रपद इन नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र आता है तो यह विशेष संयोग त्रिपुष्कर नाम का विशेष योग बनाता है। इस योग में एक बार किया गया काम तीन गुना हो जाता है। यानी अगर इस योग में कोई भी शुभ या अशुभ काम किया जाए तो उसका फल तीन गुना हो जाता है चाहे अशुभ हो या शुभ हो चुंकि इन नक्षत्रों का तीन पैर एक राशि में होता और एक पैर दूसरे में अत: इस योग में किये गये काम को तीन बार करना होता है यह ज्योतिषशास्त्र का मत है।
– ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस योग में धन संबंधित काम करना चाहिए इससे उसका फल तीन गुना मिलेगा।
– ऐसा माना जाता है कि इस योग में स्थाई सम्पत्ति के काम करने चाहिए इससे सम्पत्ति तीन गुना हो जाएगी।
– अगर इस योग मे बैंक संबधित लेन देन भी किया जाए तो बैंक बेलेंस बढऩे लगता है।
– अगर इस योग मे सोना, चांदी, वाहन आदि बहुमूल्य वस्तुएं खरीदें तो उनमें भी वृद्धि प्राप्त होती है।
– इस उत्तम योग मे धर्मिक यात्राएं करने से बहुत पुण्य मिलता है, और इस समय पूजा अर्चना का भी विशेष महत्व है।
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