somvati amavasya ka mahtv, सोमवती अमावस्या का महत्व,
सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या, somvati amavasya, कहते हैं। शास्त्रों में सोमवती अमावस्या का महत्व, somvati amavasya ka mahtv, बहुत अधिक बताया गया है । कहते है सोमवती अमावस्या Somwati Amavasya बड़े भाग्य से पड़ती है।
सोमवती अमावस्या Somwati Amavasya कलियुग के कल्याणकारी पर्वो में से एक है, लेकिन सोमवती अमावस्या Somwati Amavasya को अन्य अमावस्याओं से अधिक पुण्य कारक मानने के पीछे भी शास्त्रीय और पौराणिक कारण हैं। सोमवार को भगवान शिव और चंद्रमा का दिन कहा गया है।
सोम यानि चंद्रमा। अमावस्या और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का सोमांश यानि अमृतांश सीधे-सीधे पृथ्वी पर पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार सोमवती अमावस्या Somwati Amavasya पर चंद्रमा का अमृतांश पृथ्वी पर सबसे अधिक मात्रा में पड़ता है।
सोमवती अमावस्या का महत्व, somvati amavasya ka mahtv,
अमावस्या अमा और वस्या दो शब्दों से मिलकर बना है। शिव महापुराण में इस संधि विच्छेद को भगवान शिव ने माता पार्वती को समझाया था। क्योंकि सोम को अमृत भी कहा जाता है, अमा का अर्थ है एकत्र करना और वस्या वास को कहा गया है।
यानि जिसमें सब एक साथ वास करते हों वह अमावस्या अति पवित्र सोमवती अमावस्या Somwati Amavasya कहलाती है। यह भी माना जाता है की सोमवती अमावस्या में भक्तों को अमृत की प्राप्ति होती है।
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इस दिन प्रात: काल पीपल की सेवा करने, मीठा जल से सींचने, पीपल की परिक्रमा करने से सहस्र गोदान का पुण्य फल प्राप्त होता है।
हिन्दु धर्म शास्त्रों में इसे अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत की भी संज्ञा दी गयी है। अश्वत्थ यानि पीपल वृक्ष। इस दिन पीपल कि सेवा,पूजा, परिक्रमा का अति विशेष महत्व है।
शास्त्रों के अनुसार में पीपल की छाया से, स्पर्श करने से और प्रदक्षिणा करने से समस्त पापों का नाश, अक्षय लक्ष्मी की प्राप्ति और आयु में वृद्धि होती है।
पीपल के पूजन में दूध, दही, मीठा,फल,फूल, जल,जनेऊ जोड़ा चढ़ाने और दीप दिखाने से भक्तों कि सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
कहते है कि पीपल के मूल में भगवान विष्णु, तने में भगवान शिव जी तथा अग्रभाग में भगवान ब्रह्मा जी का निवास है। इसलिए सोमवार को यदि अमावस्या हो तो पीपल के पूजन से अक्षय पुण्य, लाभ तथा सौभाग्य की वृद्धि होती है।
इस दिन विवाहित स्त्रियों द्वारा पीपल के वृक्ष की दूध, जल, पुष्प, अक्षत, चन्दन इत्यादि से पूजा और वृक्ष के चारों ओर १०८ बार धागा लपेट कर परिक्रमा करने का विधान होता है।और प्रत्येक परिक्रमा में कोई भी एक मिठाई, फल, मिश्री या मेवा चढ़ाने से विशेष लाभ होता है ।
प्रदक्षिणा के समय 108 फल अलग रखकर समापन के समय वे सभी वस्तुएं ब्राह्मणों और निर्धनों को दान करें।
सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष के चारों ओर यदि धागा ना लपेट पाएं तो भी पीपल की 108 परिक्रमा करने से जन्म जन्मान्तरों के पाप का नाश होता है, भाग्य प्रबल होता है ।
मान्यता है की यदि कोई भी जातक ( स्त्री या पुरुष ) इस प्रक्रिया को कम से कम तीन सोमवती अमावस्या तक करे तो उसे जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति मिलती है, सारे कार्य सुगमता से बनने लगते है।
इस प्रक्रिया से पितृ दोष का भी निश्चित ही समधान होता है। अतः हर जातक को सोमवती अमावस्या के दिन पीपल का यह उपाय अवश्य ही करना चाहिए ।
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इस दिन जो स्त्री तुलसी व माता पार्वती पर सिन्दूर चढ़ाकर अपनी माँग में लगाती है वह अखण्ड सौभाग्यवती बनी रहती है । आज के दिन महिलाएँ कपड़ा, गहना, बरतन, अनाज अथवा कोई भी खाने की वस्तु वस्तुयें दान कर सकती है जिससे उनके जीवन में शुभता आती है,समाज में उनके परिवार का नाम होता है, यश मिलता है ।
जिन जातकों की जन्मपत्रिका में घातक कालसर्प दोष KaalSarp Dosh है, वे लोग यदि सोमवती अमवस्या Somwati Amavasya पर चांदी के बने नाग-नागिन की विधिवत पूजा करके उन्हे नदीं में प्रवाहित कर दें, भगवान भोले भण्डारी पर कच्चा दूध चढ़ायें, पीपल पर मीठा जल चढ़ाकर उसकी परिक्रमा करें, धूप दीप जलाएं, ब्रह्मणो को यथा शक्ति दान दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद ग्रहण करें तो उन्हें निश्चित ही कालसर्प दोष से छुटकारा मिलेगा।
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Published By : Memory Museum
Updated On : 2024-08-30 06:24:55 PM
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