सूर्य ग्रहण कब होता है, sury grahan kab hota hai,
सूर्य ग्रहण ( Surya grahan ) के अदभुत खगोलीय घटना है जो प्राय: प्रति वर्ष पूरी दुनिया में होती ही है, हमारे ज्योतिषियों को यह पता होता है कि सूर्य ग्रहण कब होता है, sury grahan kab hota hai । कई बार कोई सूर्यग्रहण ( Suryagrahan ) विश्व के किसी हिस्से में दिखाई देता है कई बार किसी और जगह।
सूर्य ग्रहण Surya grahan सदैव अमावस्या को ही होता है। पृथ्वी अपनी कक्षा में सूरज की परिक्रमा करती है और चन्द्रमा भी अपनी कक्षा में ही पृथ्वी की परिक्रमा करता है।
जब चन्द्रमा सूर्य व पृथ्वी के बीच में आ जाता है तो सूर्य चन्द्रमा के पीछे कुछ समय के लिए छुप जाता है ढक जाता है, चन्द्रमा सूरज का आंशिक या सारा प्रकाश रोक लेता है जिससे धरती पर कुछ समय के लिए हल्का अंधकार फैल जाता है इसे ही सूर्य ग्रहण Surya grahan कहते है।
समान्यता सूर्य ग्रहण तीन तरह के होते है
आंशिक सूर्य ग्रहण,
पूर्ण सूर्य ग्रहण तथा
वलयाकार सूर्य ग्रहण ।
1. जब चन्द्रमा, सूरज के थोड़े से हिस्से को ही ढ़कता है, अर्थात पृथ्वी से सूर्य का कुछ ही भाग दिखाई नहीं देता है तो उसे खण्ड- सूर्य ग्रहण या आंशिक सूर्य ग्रहण कहते है।

2. लेकिन जब कभी चन्द्रमा सूरज को पूरी तरह से ढँक लेता है, तो वह पूर्ण- सूर्य ग्रहण कहलाता हैं। पूर्ण-सूर्य ग्रहण पृथ्वी के बहुत कम हिस्से में ही दिखता है, ज़्यादा से ज़्यादा 250 किलोमीटरक्षेत्रमें। इस क्षेत्र के बाहर केवल आंशिक सूर्य ग्रहण ही दिखाई देता है।
पूर्ण-ग्रहण के समय सूरज के सामने से चन्द्रमा को गुजरने में सिर्फ दो घण्टे लगते हैं तथा चन्द्रमा सूरज को पूरी तरह से, अधिक से अधिक, सात मिनट तक ही ढँक पाता है। इन कुछ मिनटों के लिए आसमान में अंधकार सा हो जाता है।
3. वलयाकार सूर्य ग्रहण में जब पृथ्वी के काफ़ी दूर रहते हुए चन्द्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है अर्थात सूर्य को चन्द्रमा इस प्रकार ढकता है, कि सूर्य का केवल मध्य भाग ही छाया क्षेत्र में आता है और
पृथ्वी से चन्द्रमा द्वारा सूर्य पूरी तरह ढका दिखाई नहीं देता वरन सूर्य का बाहरी भाग प्रकाशित होने के कारण कंगन या वलय के रूप में चमकता हुआ दिखाई देता है। तो कंगन के आकार में बने इस सूर्यग्रहण को वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते है।
हमारे ऋषि मुनियों , ज्योतिषियों ने अति प्राचीन काल से ही ग्रहण की बिलकुल सटीक गणना करना प्रारम्भ कर दी थी।
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सूर्य ग्रहण कब है, Sury Grahan Kab Hai
पंचांग के अनुसार वर्ष 2025 का पहला सूर्य ग्रहण शनिवार 29 मार्च 2025 को लगा था ।
29 मार्च शनि अमावस्या के दिन लगने वाला यह सूर्य ग्रहण भारतीय समयानुसार शनिवार दोपहर 2.21 बजे से शुरू हुआ था , जो सांय 6.14 PM को समाप्त हुआ था । उस सूर्य ग्रहण की अवधि लगभग 03 घंटे 53 मिनट तक थी ।
चैत्र नवरात्री के ठीक एक दिन पहले शनिवार के दिन लगने वाला वह सूर्य ग्रहण एक आंशिक सूर्य ग्रहण था जाप भारत में नहीं नज़र आया था इसलिए उसका भी सूतक भारत में मान्य नहीं था ।
यह सूर्य ग्रहण दक्षिण अमेरिका, आंशिक उत्तरी अमेरिका, उत्तरी एशिया, उत्तर-पश्चिम अफ्रीका, यूरोप उत्तरी ध्रुव, आर्कटिक महासागर और अटलांटिक महासागर में दिखाई दिया था ।
वह सूर्य ग्रहण शनि अमावस्या के मीन राशि और उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में लगा था ।
ग्रहण काल में जप तप, पूजा पाठ अवश्य ही करना चाहिए । सूर्य ग्रहण के समय में किये गए जाप तप, दान का करोडो गुना फल प्राप्त होता है ।

आज रविवार 21 सितम्बर को वर्ष 2025 का दूसरा और अंतिम सूर्य ग्रहण लगेगा । इससे पहले इस वर्ष 29 मार्च को सूर्य ग्रहण लगा था वह भी आंशिक सूर्य ग्रहण ही था । पितृ पक्ष के पहले दिन अश्विन माह की पूर्णिमा के दिन चंद्र ग्रहण लगा था और पितृ पक्ष के अंतिम दिन अश्विन माह की अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण अर्थात केवल 15 दिनों के अंतराल में ही यह दोनों ग्रहण लगे है, इस लिए इस सूर्यग्रहण का ज्योतिष शास्त्र में बहुत ही ज्यादा महत्त्व माना जा रहा है ।
21 सितंबर रविवार को लगने वाला सूर्यग्रहण रात्रि 11 बजे से प्रारंभ होकर 22 सितंबर की तड़के सुबह 3:23 बजे तक रहेगा। ये सूर्य ग्रहण एक आंशिक ग्रहण है। यह सूर्य ग्रहण भारतीय समयानुसार रात्रि में लगेगा और यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं होगा, इसलिए भारत में इसका सूतक काल मान्य नहीं है, और मंदिरो के कपाट भी बंद नहीं होंगे ।
चूँकि यह ग्रहण सर्वपितृ अमावस्या के दिन लगेगा, इसे धार्मिक दृष्टि से अत्यंत अहम माना जाता है, साथ ही ज्योतिषाचार्यो में इस ग्रहण में विशेष सावधानी रखने की सलाह दी है ।।
इस बार दोनों ही सूर्य ग्रहण क्रमश : चैत्र नवरात्री और अश्विन नवरात्री के ठीक एक दिन पहले की अमावस्या के दिन ही लगे है यह भी अत्यंत दुर्लभ संयोग माना जा रहा है ।
यह सूर्य ग्रहण कन्या राशि और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में लग रहा है जो कि सूर्य का नक्षत्र है और इसका समापन हस्त नक्षत्र में होगा, जो कि चंद्रमा का नक्षत्र है ।
सूर्य ग्रहण के दौरान खाना खाने की, काटने, छीलने, सिलाई करने, जमीन खोदने का काम करने, सोने की मनाई होती है, शास्त्रों के अनुसार ऐसा करने से कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है ।
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ग्रहण काल में कुछ सावधानियाँ अवश्य ही रखनी चाहिए, ग्रहण काल में भूल कर भी शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाना चाहिए।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहण विश्व के किसी भी कोने में क्यों ना हो ग्रहण काल में जप तप का अक्षय पुण्य मिलता है ।

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पं मुक्ति नारायण पाण्डेय
( हस्त रेखा, कुंडली, ज्योतिष विशेषज्ञ )

